1 पतरस 4:1-11

1 पतरस 4:1-11 पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) (HINOVBSI)

इसलिये जब कि मसीह ने शरीर में होकर दु:ख उठाया तो तुम भी उसी मनसा को हथियार के समान धारण करो, क्योंकि जिसने शरीर में दु:ख उठाया वह पाप से छूट गया, ताकि भविष्य में अपना शेष शारीरिक जीवन मनुष्यों की अभिलाषाओं के अनुसार नहीं वरन् परमेश्‍वर की इच्छा के अनुसार व्यतीत करे। क्योंकि अन्यजातियों की इच्छा के अनुसार काम करने, और लुचपन की बुरी अभिलाषाओं, मतवालापन, लीलाक्रीड़ा, पियक्‍कड़पन, और घृणित मूर्तिपूजा में जहाँ तक हम ने पहले समय गँवाया, वही बहुत हुआ। इससे वे अचम्भा करते हैं कि तुम ऐसे भारी लुचपन में उनका साथ नहीं देते, और इसलिये वे बुरा भला कहते हैं; पर वे उसको जो जीवतों और मरे हुओं का न्याय करने को तैयार है, लेखा देंगे। क्योंकि मरे हुओं को भी सुसमाचार इसी लिये सुनाया गया कि शरीर में तो मनुष्यों के अनुसार उनका न्याय हो, पर आत्मा में वे परमेश्‍वर के अनुसार जीवित रहें। सब बातों का अन्त तुरन्त होनेवाला है; इसलिये संयमी होकर प्रार्थना के लिये सचेत रहो। सब में श्रेष्‍ठ बात यह है कि एक दूसरे से अधिक प्रेम रखो, क्योंकि प्रेम अनेक पापों को ढाँप देता है। बिना कुड़कुड़ाए एक दूसरे का अतिथि–सत्कार करो। जिसको जो वरदान मिला है, वह उसे परमेश्‍वर के नाना प्रकार के अनुग्रह के भले भण्डारियों के समान एक दूसरे की सेवा में लगाए। यदि कोई बोले, तो ऐसा बोले मानो परमेश्‍वर का वचन है; यदि कोई सेवा करे, तो उस शक्‍ति से करे जो परमेश्‍वर देता है; जिससे सब बातों में यीशु मसीह के द्वारा, परमेश्‍वर की महिमा प्रगट हो। महिमा और साम्राज्य युगानुयुग उसी का है। आमीन।

1 पतरस 4:1-11 पवित्र बाइबल (HERV)

जब मसीह ने शारीरिक दुःख उठाया तो तुम भी उसी मानसिकता को शास्त्र के रूप में धारण करो क्योंकि जो शारीरिक दुःख उठाता है, वह पापों से छुटकारा पा लेता है। इसलिए वह फिर मानवीय इच्छाओं का अनुसरण न करे, बल्कि परमेश्वर की इच्छा के अनुसार कर्म करते हुए अपने शेष भौतिक जीवन को समर्पित कर दे। क्योंकि तुम अब तक अबोध व्यक्तियों के समान विषय-भोगों, वासनाओं, पियक्कड़पन, उन्माद से भरे आमोद-प्रमोद, मधुपान उत्सवों और घृणापूर्ण मूर्ति-पूजाओं में पर्याप्त समय बिता चुके हो। अब जब तुम इस घृणित रहन सहन में उनका साथ नहीं देते हो तो उन्हें आश्चर्य होता है। वे तुम्हारी निन्दा करते हैं। उन्हें जो अभी जीवित हैं या मर चुके हैं, अपने व्यवहार का लेखा-जोखा उस मसीह को देना होगा जो उनका न्याय करने वाला है। इसलिए उन विश्वासियों को जो मर चुके हैं, सुसमाचार का उपदेश दिया गया कि शारीरिक रूप से चाहे उनका न्याय मानवीय स्तर पर हो किन्तु आत्मिक रूप से वे परमेश्वर के अनुसार रहें। वह समय निकट है जब सब कुछ का अंत हो जाएगा। इसलिए समझदार बनो और अपने पर काबू रखो ताकि तुम्हें प्रार्थना करने में सहायता मिले। और सबसे बड़ी बात यह है कि एक दूसरे के प्रति निरन्तर प्रेम बनाये रखो क्योंकि प्रेम से अनगिनत पापों का निवारण होता है। बिना कुछ कहे सुने एक दूसरे का स्वागत सत्कार करो। जिस किसी को परमेश्वर की ओर से जो भी वरदान मिला है, उसे चाहिए कि परमेश्वर के विविध अनुग्रह के उत्तम प्रबन्धकों के समान, एक दूसरे की सेवा के लिए उसे काम में लाए। जो कोई प्रवचन करे वह ऐसे करे, जैसे मानो परमेश्वर से प्राप्त वचनों को ही सुना रहा हो। जो कोई सेवा करे, वह उस शक्ति के साथ करे, जिसे परमेश्वर प्रदान करता है ताकि सभी बातों में यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर की महिमा हो। महिमा और सामर्थ्य सदा सर्वदा उसी की है। आमीन!

1 पतरस 4:1-11 पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) (HINCLBSI)

मसीह ने अपने शरीर में दु:ख भोगा; इसलिए आप भी शस्‍त्र की तरह यही मनोभाव धारण करें कि जिसने अपने शरीर में दु:ख भोगा है, उसने पाप से सम्‍बन्‍ध तोड़ लिया है और उसे मानवीय वासनाओं के अनुसार नहीं, बल्‍कि परमेश्‍वर की इच्‍छानुसार अपना शेष जीवन बिताना चाहिए। आप लोगों ने पहले सांसारिक लोगों की जीवनचर्या के अनुसार व्‍यभिचार, भोग-विलास, मदिरापान, रंगरलियों, मादकता और घृणित मूर्तिपूजा में जो समय बिताया, वही बहुत हुआ। अब आप उन लोगों के साथ विलासिता के दलदल में गोता नहीं लगाते, इसलिए उन्‍हें आश्‍चर्य होता और वे आपकी निन्‍दा करते हैं। उन्‍हें जीवितों और मृतकों का न्‍याय करनेवाले परमेश्‍वर को अपने आचरण का लेखा देना पड़ेगा। यही कारण है कि मृतकों को भी शुभ समाचार सुनाया गया, जिससे यद्यपि वे शरीर में मनुष्‍यों की तरह दण्‍डित हुए थे, फिर भी आत्‍मा में वे परमेश्‍वर के अनुरूप जीवित रहें। सब का अन्‍त निकट आ गया है। आप लोग सन्‍तुलन तथा संयम रखें, जिससे आप प्रार्थना कर सकें। मुख्‍य बात यह है कि आप आपस में गहरा प्रेम बनाये रखें, क्‍योंकि प्रेम बहुत-से पाप ढाँक देता है। आप बिना कुड़कुड़ाए एक दूसरे का आतिथ्‍य-सत्‍कार करें। जिसे जो वरदान मिला है, वह-परमेश्‍वर के बहुविध अनुग्रह के सुयोग्‍य भण्‍डारी की तरह-दूसरों की सेवा में उसका उपयोग करे। जो प्रवचन देता है, उसे स्‍मरण रहे कि वह परमेश्‍वर के शब्‍द बोल रहा है। जो धर्मसेवा करता है, वह जान ले कि परमेश्‍वर ही उसे बल प्रदान करता है। इस प्रकार सब बातों में येशु मसीह द्वारा परमेश्‍वर की महिमा प्रकट हो जायेगी। महिमा तथा सामर्थ्य युगानुयुग परमेश्‍वर का ही है। आमेन!

1 पतरस 4:1-11 Hindi Holy Bible (HHBD)

सो जब कि मसीह ने शरीर में होकर दुख उठाया तो तुम भी उस ही मनसा को धारण करके हथियार बान्ध लो क्योंकि जिसने शरीर में दुख उठाया, वह पाप से छूट गया। ताकि भविष्य में अपना शेष शारीरिक जीवन मनुष्यों की अभिलाषाओं के अनुसार नहीं वरन परमेश्वर की इच्छा के अनुसार व्यतीत करो। क्योंकि अन्यजातियों की इच्छा के अनुसार काम करने, और लुचपन की बुरी अभिलाषाओं, मतवालापन, लीलाक्रीड़ा, पियक्कड़पन, और घृणित मूर्तिपूजा में जहां तक हम ने पहिले समय गंवाया, वही बहुत हुआ। इस से वे अचम्भा करते हैं, कि तुम ऐसे भारी लुचपन में उन का साथ नहीं देते, और इसलिये वे बुरा भला कहते हैं। पर वे उस को जो जीवतों और मरे हुओं का न्याय करने को तैयार है, लेखा देंगे। क्योंकि मरे हुओं को भी सुसमाचार इसी लिये सुनाया गया, कि शरीर में तो मनुष्यों के अनुसार उन का न्याय हो, पर आत्मा में वे परमेश्वर के अनुसार जीवित रहें॥ सब बातों का अन्त तुरन्त होने वाला है; इसलिये संयमी होकर प्रार्थना के लिये सचेत रहो। और सब में श्रेष्ठ बात यह है कि एक दूसरे से अधिक प्रेम रखो; क्योंकि प्रेम अनेक पापों को ढांप देता है। बिना कुड़कुड़ाए एक दूसरे की पहुनाई करो। जिस को जो वरदान मिला है, वह उसे परमेश्वर के नाना प्रकार के अनुग्रह के भले भण्डारियों की नाईं एक दूसरे की सेवा में लगाए। यदि कोई बोले, तो ऐसा बोले, मानों परमेश्वर का वचन है; यदि कोई सेवा करे; तो उस शक्ति से करे जो परमेश्वर देता है; जिस से सब बातों में यीशु मसीह के द्वारा, परमेश्वर की महिमा प्रगट हो: महिमा और साम्राज्य युगानुयुग उसी की है। आमीन॥

1 पतरस 4:1-11 इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 (IRVHIN)

इसलिए जबकि मसीह ने शरीर में होकर दुःख उठाया तो तुम भी उसी मनसा को हथियार के समान धारण करो, क्योंकि जिसने शरीर में दुःख उठाया, वह पाप से छूट गया, ताकि भविष्य में अपना शेष शारीरिक जीवन मनुष्यों की अभिलाषाओं के अनुसार नहीं वरन् परमेश्वर की इच्छा के अनुसार व्यतीत करो। क्योंकि अन्यजातियों की इच्छा के अनुसार काम करने, और लुचपन की बुरी अभिलाषाओं, मतवालापन, लीलाक्रीड़ा, पियक्कड़पन, और घृणित मूर्तिपूजा में जहाँ तक हमने पहले से समय गँवाया, वही बहुत हुआ। इससे वे अचम्भा करते हैं, कि तुम ऐसे भारी लुचपन में उनका साथ नहीं देते, और इसलिए वे बुरा-भला कहते हैं। पर वे उसको जो जीवितों और मरे हुओं का न्याय करने को तैयार हैं, लेखा देंगे। (2 तीमु. 4:1) क्योंकि मरे हुओं को भी सुसमाचार इसलिए सुनाया गया, कि शरीर में तो मनुष्यों के अनुसार उनका न्याय हुआ, पर आत्मा में वे परमेश्वर के अनुसार जीवित रहें। सब बातों का अन्त तुरन्त होनेवाला है; इसलिए संयमी होकर प्रार्थना के लिये सचेत रहो। (याकू. 5:8, इफि. 6:18) सब में श्रेष्ठ बात यह है कि एक दूसरे से अधिक प्रेम रखो; क्योंकि प्रेम अनेक पापों को ढाँप देता है। (नीति. 10:12) बिना कुड़कुड़ाए एक दूसरे का अतिथि-सत्कार करो। जिसको जो वरदान मिला है, वह उसे परमेश्वर के नाना प्रकार के अनुग्रह के भले भण्डारियों के समान एक दूसरे की सेवा में लगाए। यदि कोई बोले, तो ऐसा बोले मानो परमेश्वर का वचन है; यदि कोई सेवा करे, तो उस शक्ति से करे जो परमेश्वर देता है; जिससे सब बातों में यीशु मसीह के द्वारा, परमेश्वर की महिमा प्रगट हो। महिमा और सामर्थ्य युगानुयुग उसी की है। आमीन।

1 पतरस 4:1-11 सरल हिन्दी बाइबल (HSS)

इसलिये कि मसीह ने शरीर में दुःख सहा, तुम स्वयं भी वैसी ही मनोभाव धारण कर लो, क्योंकि जिस किसी ने शरीर में दुःख सहा है, उसने पाप को त्याग दिया है. इसलिये अब से तुम्हारा शेष शारीरिक जीवन मानवीय लालसाओं को पूरा करने में नहीं परंतु परमेश्वर की इच्छा के नियंत्रण में व्यतीत हो. काफ़ी था वह समय, जो तुम अन्यजातियों के समान इन लालसाओं को पूरा करने में बिता चुके: कामुकता, वासना, मद्यपान उत्सव, व्यभिचार, रंगरेलियां तथा घृणित मूर्तिपूजन. अब वे अचंभा करते हैं कि तुम उसी व्यभिचारिता की अधिकता में उनका साथ नहीं दे रहे. इसलिये अब वे तुम्हारी बुराई कर रहे हैं. अपने कामों का लेखा वे उन्हें देंगे, जो जीवितों और मरे हुओं के न्याय के लिए तैयार हैं. इसी उद्देश्य से ईश्वरीय सुसमाचार उन्हें भी सुनाया जा चुका है, जो अब मरे हुए हैं कि वे मनुष्यों के न्याय के अनुसार शरीर में तो दंडित किए जाएं किंतु अपनी आत्मा में परमेश्वर की इच्छानुसार जीवित रह सकें. संसार का अंत पास है इसलिये तुम प्रार्थना के लिए संयम और सचेत भाव धारण करो. सबसे उत्तम तो यह है कि आपस में उत्तम प्रेम रखो क्योंकि प्रेम अनगिनत पापों पर पर्दा डाल देता है. बिना कुड़कुड़ाए एक दूसरे का अतिथि-सत्कार करो. हर एक ने परमेश्वर द्वारा विशेष क्षमता प्राप्‍त की है इसलिये वह परमेश्वर के असीम अनुग्रह के उत्तम भंडारी होकर एक दूसरे की सेवा करने के लिए उनका अच्छी तरह से उपयोग करें. यदि कोई प्रवचन करे, तो इस भाव में, मानो वह स्वयं परमेश्वर का वचन हो; यदि कोई सेवा करे, तो ऐसी सामर्थ्य से, जैसा परमेश्वर प्रदान करते हैं कि सभी कामों में मसीह येशु के द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद हो, जिनका साम्राज्य और महिमा सदा-सर्वदा है. आमेन.