1 कुरिन्थियों 7:1-24
1 कुरिन्थियों 7:1-24 पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) (HINOVBSI)
उन बातों के विषय में जो तुम ने लिखीं, यह अच्छा है कि पुरुष स्त्री को न छूए। परन्तु व्यभिचार के डर से हर एक पुरुष की पत्नी, और हर एक स्त्री का पति हो। पति अपनी पत्नी का हक्क पूरा करे; और वैसे ही पत्नी भी अपने पति का। पत्नी को अपनी देह पर अधिकार नहीं पर उसके पति का अधिकार है; वैसे ही पति को भी अपनी देह पर अधिकार नहीं, परन्तु पत्नी का है। तुम एक दूसरे से अलग न रहो; परन्तु केवल कुछ समय तक आपस की सम्मति से कि प्रार्थना के लिये अवकाश मिले, और फिर एक साथ रहो; ऐसा न हो कि तुम्हारे असंयम के कारण शैतान तुम्हें परखे। परन्तु मैं जो यह कहता हूँ वह अनुमति है न कि आज्ञा। मैं यह चाहता हूँ कि जैसा मैं हूँ, वैसे ही सब मनुष्य हों; परन्तु हर एक को परमेश्वर की ओर से विशेष विशेष वरदान मिले हैं; किसी को किसी प्रकार का, और किसी को किसी और प्रकार का। परन्तु मैं अविवाहितों और विधवाओं के विषय में कहता हूँ कि उनके लिये ऐसा ही रहना अच्छा है, जैसा मैं हूँ। परन्तु यदि वे संयम न कर सकें, तो विवाह करें; क्योंकि विवाह करना कामातुर रहने से भला है। जिनका विवाह हो गया है, उनको मैं नहीं, वरन् प्रभु आज्ञा देता है कि पत्नी अपने पति से अलग न हो – और यदि अलग भी हो जाए, तो बिन दूसरा विवाह किए रहे; या अपने पति से फिर मेल कर ले – और न पति अपनी पत्नी को छोड़े। दूसरों से प्रभु नहीं परन्तु मैं ही कहता हूँ, यदि किसी भाई की पत्नी विश्वास न रखती हो और उसके साथ रहने से प्रसन्न हो, तो वह उसे न छोड़े। जिस स्त्री का पति विश्वास न रखता हो, और उसके साथ रहने से प्रसन्न हो; वह पति को न छोड़े। क्योंकि ऐसा पति जो विश्वास न रखता हो, वह पत्नी के कारण पवित्र ठहरता है; और ऐसी पत्नी जो विश्वास नहीं रखती, पति के कारण पवित्र ठहरती है; नहीं तो तुम्हारे बाल–बच्चे अशुद्ध होते, परन्तु अब तो पवित्र हैं। परन्तु जो पुरुष विश्वास नहीं रखता, यदि वह अलग हो तो अलग होने दो, ऐसी दशा में कोई भाई या बहिन बन्धन में नहीं। परमेश्वर ने हमें मेलमिलाप के लिये बुलाया है। क्योंकि हे स्त्री, तू क्या जानती है कि तू अपने पति का उद्धार करा लेगी? और हे पुरुष, तू क्या जानता है कि तू अपनी पत्नी का उद्धार करा लेगा? जैसा प्रभु ने हर एक को बाँटा है, और जैसा परमेश्वर ने हर एक को बुलाया है, वैसा ही वह चले। मैं सब कलीसियाओं में ऐसा ही ठहराता हूँ। जो खतना किया हुआ बुलाया गया हो, वह खतनारहित न बने। जो खतनारहित बुलाया गया हो, वह खतना न कराए। न खतना कुछ है और न खतनारहित, परन्तु परमेश्वर की आज्ञाओं को मानना ही सब कुछ है। हर एक जन जिस दशा में बुलाया गया हो, उसी में रहे। यदि तू दास की दशा में बुलाया गया हो तो चिन्ता न कर; परन्तु यदि तू स्वतंत्र हो सके, तो ऐसा ही काम कर। क्योंकि जो दास की दशा में प्रभु में बुलाया गया है, वह प्रभु का स्वतंत्र किया हुआ है। वैसे ही जो स्वतंत्रता की दशा में बुलाया गया है, वह मसीह का दास है। तुम दाम देकर मोल लिए गए हो; मनुष्यों के दास न बनो। हे भाइयो, जो कोई जिस दशा में बुलाया गया हो, वह उसी में परमेश्वर के साथ रहे।
1 कुरिन्थियों 7:1-24 पवित्र बाइबल (HERV)
अब उन बातों के बारे में जो तुमने लिखीं थीं: अच्छा यह है कि कोई पुरुष किसी स्त्री को छुए ही नहीं। किन्तु यौन अनैतिकता की घटनाओं की सम्भावनाओं के कारण हर पुरुष की अपनी पत्नी होनी चाहिये और हर स्त्री का अपना पति। पति को चाहिये कि पत्नी के रूप में जो कुछ पत्नी का अधिकार बनता है, उसे दे। और इसी प्रकार पत्नी को भी चाहिये कि पति को उसका यथोचित प्रदान करे। अपने शरीर पर पत्नी का कोई अधिकार नहीं हैं बल्कि उसके पति का है। और इसी प्रकार पति का भी उसके अपने शरीर पर कोई अधिकार नहीं है, बल्कि उसकी पत्नी का है। अपने आप को प्रार्थना में समर्पित करने के लिये थोड़े समय तक एक दूसरे से समागम न करने की आपसी सहमती को छोड़कर, एक दूसरे को संभोग से वंचित मत करो। फिर आत्म-संयम के अभाव के कारण कहीं शैतान तुम्हें किसी परीक्षा में न डाल दे, इसलिए तुम फिर समागम कर लो। मैं यह एक छूट के रूप में कह रहा हूँ, आदेश के रूप में नहीं। मैं तो चाहता हूँ सभी लोग मेरे जैसे होते। किन्तु हर व्यक्ति को परमेश्वर से एक विशेष बरदान मिला है। किसी का जीने का एक ढंग है तो दूसरे का दूसरा। अब मुझे अविवाहितों और विधवाओं के बारे में यह कहना है:यदि वे मेरे समान अकेले ही रहें तो उनके लिए यह उत्तम रहेगा। किन्तु यदि वे अपने आप पर काबू न रख सकें तो उन्हें विवाह कर लेना चाहिये; क्योंकि वासना की आग में जलते रहने से विवाह कर लेना अच्छा है। अब जो विवाहित हैं उनको मेरा यह आदेश है, (यद्यपि यह मेरा नहीं है, बल्कि प्रभु का आदेश है) कि किसी पत्नी को अपना पति नहीं त्यागना चाहिये। किन्तु यदि वह उसे छोड़ ही दे तो उसे फिर अनब्याहा ही रहना चाहिये या अपने पति से मेल-मिलाप कर लेना चाहिये। और ऐसे ही पति को भी अपनी पत्नी को छोड़ना नहीं चाहिये। अब शेष लोगों से मेरा यह कहना है, यह मैं कह रहा हूँ न कि प्रभु यदि किसी मसीही भाई की कोई एैसी पत्नी है जो इस मत में विश्वास नहीं रखती और उसके साथ रहने को सहमत है तो उसे त्याग नहीं देना चाहिये। ऐसे ही यदि किसी स्त्री का कोई ऐसा पति है जो पंथ का विश्वासी नहीं है किन्तु उसके साथ रहने को सहमत है तो उस स्त्री को भी अपना पति त्यागना नहीं चाहिये। क्योंकि वह अविश्वासी पति विश्वासी पत्नी से निकट संबन्धों के कारण पवित्र हो जाता है और इसी प्रकार वह अविश्वासिनी पत्नी भी अपने विश्वासी पति के निरन्तर साथ रहने से पवित्र हो जाती है। नहीं तो तुम्हारी संतान अस्वच्छ हो जाती किन्तु अब तो वे पवित्र हैं। फिर भी यदि कोई अविश्वासी अलग होना चाहता है तो वह अलग हो सकता है। ऐसी स्थितियों में किसी मसीही भाई या बहन पर कोई बंधन लागू नहीं होगा। परमेश्वर ने हमें शांति के साथ रहने को बुलाया है। हे पत्नियो, क्या तुम जानती हो? हो सकता है तुम अपने अविश्वासी पति को बचा लो। प्रभु ने जिसको जैसा दिया है और जिसको जिस रूप में चुना है, उसे वैसे ही जीना चाहिये। सभी कलीसियों में मैं इसी का आदेश देता हूँ। जब किसी को परमेश्वर के द्वारा बुलाया गया, तब यदि वह ख़तना युक्त था तो उसे अपना ख़तना छिपाना नहीं चाहिये। और किसी को ऐसी दशा में बुलाया गया जब वह बिना ख़तने के था तो उसका ख़तना कराना नहीं चाहिये। ख़तना तो कुछ नहीं है, और न ही ख़तना नहीं होना कुछ है। बल्कि परमेश्वर के आदेशों का पालन करना ही सब कुछ है। हर किसी को उसी स्थिति में रहना चाहिये, जिसमें उसे बुलाया गया है। क्या तुझे दास के रूप में बुलाया गया है? तू इसकी चिंता मत कर। किन्तु यदि तू स्वतन्त्र हो सकता है तो आगे बढ़ और अवसर का लाभ उठा। क्योंकि जिसे प्रभु के दास के रूप में बुलाया गया, वह तो प्रभु का स्वतन्त्र व्यक्ति है। इसी प्रकार जिसे स्वतन्त्र व्यक्ति के रूप में बुलाया गया, वह मसीह का दास है। परमेश्वर ने कीमत चुका कर तुम्हें खरीदा है। इसलिए मनुष्यों के दास मत बनो। हे भाईयों, तुम्हें जिस भी स्थिति में बुलाया गया है, परमेश्वर के सामने उसी स्थिति में रहो।
1 कुरिन्थियों 7:1-24 पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) (HINCLBSI)
अब वे बातें लें, जिनके विषय में आप लोगों ने पत्र में लिखकर पूछा है : “स्त्री से संबंध नहीं रखना पुरुष के लिए उत्तम है”। इसके विषय में मेरा विचार यह है : व्यभिचार की आशंका के कारण हर पुरुष की अपनी पत्नी हो और हर स्त्री का अपना पति। पति अपनी पत्नी के प्रति अपने कर्त्तव्य का पालन करे और स्त्री अपने पति के प्रति। पत्नी का अपने शरीर पर अधिकार नहीं, वह पति का है और उसी प्रकार पति का भी अपने शरीर पर अधिकार नहीं, वह पत्नी का है। आप लोग एक-दूसरे को उस अधिकार से वंचित नहीं करें और यदि ऐसा करें, तो दोनों की सहमति से और कुछ समय के लिए, जिससे प्रार्थना का अवकाश मिले और इसके बाद पहले-जैसे रहें। कहीं ऐसा न हो कि शैतान असंयम के कारण आप को प्रलोभन में डाल दे। मैं यह आदेश के रूप में नहीं, बल्कि अनुमति के रूप में कह रहा हूं। मैं तो चाहता हूँ कि सब मनुष्य मुझ-जैसे हों, किन्तु परमेश्वर की ओर से हर एक को विशिष्ट वरदान मिला है-किसी को एक प्रकार का, किसी को दूसरे प्रकार का। मैं अविवाहितों और विधवाओं से यह कहता हूँ : यदि वे मुझ-जैसे रहें, तो यह उनके लिए उत्तम है। यदि वे आत्मसंयम नहीं रख सकते, तो विवाह करें; क्योंकि वासना से जलने की अपेक्षा विवाह करना अच्छा है। विवाहितों को मेरा नहीं, बल्कि प्रभु का यह आदेश है कि पत्नी अपने पति से अलग न हो और यदि वह अलग हो जाये, तो उसे या तो अविवाहित रहना चाहिए या अपने पति से पुन: मेल कर लेना चाहिए। पति भी अपनी पत्नी का परित्याग नहीं करे। दूसरे लोगों से प्रभु का नहीं, बल्कि मेरा कहना यह है : यदि किसी विश्वासी भाई की पत्नी हमारे प्रभु में विश्वास नहीं करती और अपने पति के साथ रहने को सहमत है, तो वह भाई उसका परित्याग नहीं करे और यदि किसी विश्वासी स्त्री का पति हमारे प्रभु में विश्वास नहीं करता और वह अपनी पत्नी के साथ रहने को सहमत है, तो वह स्त्री अपने पति का परित्याग नहीं करे; क्योंकि विश्वास नहीं करने वाला पति अपनी पत्नी द्वारा पवित्र किया गया है और विश्वास नहीं करने वाली पत्नी अपने विश्वास-युक्त पति द्वारा पवित्र की गयी है। नहीं तो आपकी सन्तान दूषित होती, किन्तु अब वह पवित्र है। दूसरी ओर, यदि विश्वास नहीं करने वाला जीवन साथी अलग हो जाना चाहे, तो वह अलग हो जाये। ऐसी स्थिति में विश्वास करने वाला भाई या बहिन बाध्य नहीं है। फिर भी परमेश्वर ने आप को शान्ति का जीवन बिताने के लिए बुलाया है। क्या जाने, हो सकता है कि पत्नी अपने पति की मुक्ति का कारण बन जाये और पति अपनी पत्नी की मुक्ति का कारण। सामान्य नियम यह है कि हर एक व्यक्ति जिस स्थिति में परमेश्वर द्वारा बुलाया गया है, उसी में बना रहे और उसे प्रभु से जो वरदान मिला है, उसी के अनुरूप जीवन बिताये। मैं सभी कलीसियाओं के लिए यही नियम निर्धारित करता हूँ। यदि बुलाये जाने के समय किसी का ख़तना हो चुका हो, तो वह इस बात को छिपाने की चेष्टा न करे और यदि बुलाये जाने के समय उसका ख़तना नहीं हुआ हो, तो वह अपना ख़तना नहीं कराये। न तो ख़तने का कोई महत्व है और न उसके अभाव का। महत्व परमेश्वर की आज्ञाओं के पालन का है। हर एक व्यक्ति जिस स्थिति में बुलाया गया था, वह उसी में रहे। तुम बुलाये जाने के समय दास थे? तो इसकी चिन्ता न करो, और यदि तुम स्वतन्त्र भी हो सको, तो अवसर का लाभ उठा लो; क्योंकि प्रभु द्वारा बुलाये जाने के समय जो दास था, वह प्रभु द्वारा दास्यमुक्त है और उसी प्रकार प्रभु द्वारा बुलाये जाने के समय जो स्वतन्त्र था, वह मसीह का दास है। आप लोग मूल्य देकर खरीदे गये हैं, अब मनुष्यों के दास न बनें। भाइयो और बहिनो! हर एक व्यक्ति जिस स्थिति में बुलाया गया था, वह उसी में परमेश्वर की संगति में रहे।
1 कुरिन्थियों 7:1-24 Hindi Holy Bible (HHBD)
उन बातों के विषय में जो तुम ने लिखीं, यह अच्छा है, कि पुरूष स्त्री को न छुए। परन्तु व्यभिचार के डर से हर एक पुरूष की पत्नी, और हर एक स्त्री का पति हो। पति अपनी पत्नी का हक पूरा करे; और वैसे ही पत्नी भी अपने पति का। पत्नी को अपनी देह पर अधिकार नहीं पर उसके पति का अधिकार है; वैसे ही पति को भी अपनी देह पर अधिकार नहीं, परन्तु पत्नी को। तुम एक दूसरे से अलग न रहो; परन्तु केवल कुछ समय तक आपस की सम्मति से कि प्रार्थना के लिये अवकाश मिले, और फिर एक साथ रहो, ऐसा न हो, कि तुम्हारे असंयम के कारण शैतान तुम्हें परखे। परन्तु मैं जो यह कहता हूं वह अनुमति है न कि आज्ञा। मैं यह चाहता हूं, कि जैसा मैं हूं, वैसा ही सब मनुष्य हों; परन्तु हर एक को परमेश्वर की ओर से विशेष विशेष वरदान मिले हैं; किसी को किसी प्रकार का, और किसी को किसी और प्रकार का॥ परन्तु मैं अविवाहितों और विधवाओं के विषय में कहता हूं, कि उन के लिये ऐसा ही रहना अच्छा है, जैसा मैं हूं। परन्तु यदि वे संयम न कर सकें, तो विवाह करें; क्योंकि विवाह करना कामातुर रहने से भला है। जिन का ब्याह हो गया है, उन को मैं नहीं, वरन प्रभु आज्ञा देता है, कि पत्नी अपने पति से अलग न हो। (और यदि अलग भी हो जाए, तो बिन दूसरा ब्याह किए रहे; या अपने पति से फिर मेल कर ले) और न पति अपनी पत्नी को छोड़े। दूसरें से प्रभु नहीं, परन्तु मैं ही कहता हूं, यदि किसी भाई की पत्नी विश्वास न रखती हो, और उसके साथ रहने से प्रसन्न हो, तो वह उसे न छोड़े। और जिस स्त्री का पति विश्वास न रखता हो, और उसके साथ रहने से प्रसन्न हो; वह पति को न छोड़े। क्योंकि ऐसा पति जो विश्वास न रखता हो, वह पत्नी के कारण पवित्र ठहरता है, और ऐसी पत्नी जो विश्वास नहीं रखती, पति के कारण पवित्र ठहरती है; नहीं तो तुम्हारे लड़केबाले अशुद्ध होते, परन्तु अब तो पवित्र हैं। परन्तु जो पुरूष विश्वास नहीं रखता, यदि वह अलग हो, तो अलग होने दो, ऐसी दशा में कोई भाई या बहिन बन्धन में नहीं; परन्तु परमेश्वर ने तो हमें मेल मिलाप के लिये बुलाया है। क्योंकि हे स्त्री, तू क्या जानती है, कि तू अपने पति का उद्धार करा ले और हे पुरूष, तू क्या जानता है कि तू अपनी पत्नी का उद्धार करा ले? पर जैसा प्रभु ने हर एक को बांटा है, और परमेश्वर ने हर एक को बुलाया है; वैसा ही वह चले: और मैं सब कलीसियाओं में ऐसा ही ठहराता हूं। जो खतना किया हुआ बुलाया गया हो, वह खतनारिहत न बने: जो खतनारिहत बुलाया गया हो, वह खतना न कराए। न खतना कुछ है, और न खतनारिहत परन्तु परमेश्वर की आज्ञाओं को मानना ही सब कुछ है। हर एक जन जिस दशा में बुलाया गया हो, उसी में रहे। यदि तू दास की दशा में बुलाया गया हो तो चिन्ता न कर; परन्तु यदि तू स्वतंत्र हो सके, तो ऐसा ही काम कर। क्योंकि जो दास की दशा में प्रभु में बुलाया गया है, वह प्रभु का स्वतंत्र किया हुआ है: और वैसे ही जो स्वतंत्रता की दशा में बुलाया गया है, वह मसीह का दास है। तुम दाम देकर मोल लिये गए हो, मनुष्यों के दास न बनो। हे भाइयो, जो कोई जिस दशा में बुलाया गया हो, वह उसी में परमेश्वर के साथ रहे॥
1 कुरिन्थियों 7:1-24 पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) (HINOVBSI)
उन बातों के विषय में जो तुम ने लिखीं, यह अच्छा है कि पुरुष स्त्री को न छूए। परन्तु व्यभिचार के डर से हर एक पुरुष की पत्नी, और हर एक स्त्री का पति हो। पति अपनी पत्नी का हक्क पूरा करे; और वैसे ही पत्नी भी अपने पति का। पत्नी को अपनी देह पर अधिकार नहीं पर उसके पति का अधिकार है; वैसे ही पति को भी अपनी देह पर अधिकार नहीं, परन्तु पत्नी का है। तुम एक दूसरे से अलग न रहो; परन्तु केवल कुछ समय तक आपस की सम्मति से कि प्रार्थना के लिये अवकाश मिले, और फिर एक साथ रहो; ऐसा न हो कि तुम्हारे असंयम के कारण शैतान तुम्हें परखे। परन्तु मैं जो यह कहता हूँ वह अनुमति है न कि आज्ञा। मैं यह चाहता हूँ कि जैसा मैं हूँ, वैसे ही सब मनुष्य हों; परन्तु हर एक को परमेश्वर की ओर से विशेष विशेष वरदान मिले हैं; किसी को किसी प्रकार का, और किसी को किसी और प्रकार का। परन्तु मैं अविवाहितों और विधवाओं के विषय में कहता हूँ कि उनके लिये ऐसा ही रहना अच्छा है, जैसा मैं हूँ। परन्तु यदि वे संयम न कर सकें, तो विवाह करें; क्योंकि विवाह करना कामातुर रहने से भला है। जिनका विवाह हो गया है, उनको मैं नहीं, वरन् प्रभु आज्ञा देता है कि पत्नी अपने पति से अलग न हो – और यदि अलग भी हो जाए, तो बिन दूसरा विवाह किए रहे; या अपने पति से फिर मेल कर ले – और न पति अपनी पत्नी को छोड़े। दूसरों से प्रभु नहीं परन्तु मैं ही कहता हूँ, यदि किसी भाई की पत्नी विश्वास न रखती हो और उसके साथ रहने से प्रसन्न हो, तो वह उसे न छोड़े। जिस स्त्री का पति विश्वास न रखता हो, और उसके साथ रहने से प्रसन्न हो; वह पति को न छोड़े। क्योंकि ऐसा पति जो विश्वास न रखता हो, वह पत्नी के कारण पवित्र ठहरता है; और ऐसी पत्नी जो विश्वास नहीं रखती, पति के कारण पवित्र ठहरती है; नहीं तो तुम्हारे बाल–बच्चे अशुद्ध होते, परन्तु अब तो पवित्र हैं। परन्तु जो पुरुष विश्वास नहीं रखता, यदि वह अलग हो तो अलग होने दो, ऐसी दशा में कोई भाई या बहिन बन्धन में नहीं। परमेश्वर ने हमें मेलमिलाप के लिये बुलाया है। क्योंकि हे स्त्री, तू क्या जानती है कि तू अपने पति का उद्धार करा लेगी? और हे पुरुष, तू क्या जानता है कि तू अपनी पत्नी का उद्धार करा लेगा? जैसा प्रभु ने हर एक को बाँटा है, और जैसा परमेश्वर ने हर एक को बुलाया है, वैसा ही वह चले। मैं सब कलीसियाओं में ऐसा ही ठहराता हूँ। जो खतना किया हुआ बुलाया गया हो, वह खतनारहित न बने। जो खतनारहित बुलाया गया हो, वह खतना न कराए। न खतना कुछ है और न खतनारहित, परन्तु परमेश्वर की आज्ञाओं को मानना ही सब कुछ है। हर एक जन जिस दशा में बुलाया गया हो, उसी में रहे। यदि तू दास की दशा में बुलाया गया हो तो चिन्ता न कर; परन्तु यदि तू स्वतंत्र हो सके, तो ऐसा ही काम कर। क्योंकि जो दास की दशा में प्रभु में बुलाया गया है, वह प्रभु का स्वतंत्र किया हुआ है। वैसे ही जो स्वतंत्रता की दशा में बुलाया गया है, वह मसीह का दास है। तुम दाम देकर मोल लिए गए हो; मनुष्यों के दास न बनो। हे भाइयो, जो कोई जिस दशा में बुलाया गया हो, वह उसी में परमेश्वर के साथ रहे।
1 कुरिन्थियों 7:1-24 इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 (IRVHIN)
उन बातों के विषय में जो तुम ने लिखीं, यह अच्छा है, कि पुरुष स्त्री को न छूए। परन्तु व्यभिचार के डर से हर एक पुरुष की पत्नी, और हर एक स्त्री का पति हो। पति अपनी पत्नी का हक़ पूरा करे; और वैसे ही पत्नी भी अपने पति का। पत्नी को अपनी देह पर अधिकार नहीं पर उसके पति का अधिकार है; वैसे ही पति को भी अपनी देह पर अधिकार नहीं, परन्तु पत्नी को। तुम एक दूसरे से अलग न रहो; परन्तु केवल कुछ समय तक आपस की सम्मति से कि प्रार्थना के लिये अवकाश मिले, और फिर एक साथ रहो; ऐसा न हो, कि तुम्हारे असंयम के कारण शैतान तुम्हें परखे। परन्तु मैं जो यह कहता हूँ वह अनुमति है न कि आज्ञा। मैं यह चाहता हूँ, कि जैसा मैं हूँ, वैसा ही सब मनुष्य हों; परन्तु हर एक को परमेश्वर की ओर से विशेष वरदान मिले हैं; किसी को किसी प्रकार का, और किसी को किसी और प्रकार का। परन्तु मैं अविवाहितों और विधवाओं के विषय में कहता हूँ, कि उनके लिये ऐसा ही रहना अच्छा है, जैसा मैं हूँ। परन्तु यदि वे संयम न कर सके, तो विवाह करें; क्योंकि विवाह करना कामातुर रहने से भला है। जिनका विवाह हो गया है, उनको मैं नहीं, वरन् प्रभु आज्ञा देता है, कि पत्नी अपने पति से अलग न हो। (और यदि अलग भी हो जाए, तो बिना दूसरा विवाह किए रहे; या अपने पति से फिर मेल कर ले) और न पति अपनी पत्नी को छोड़े। दूसरों से प्रभु नहीं, परन्तु मैं ही कहता हूँ, यदि किसी भाई की पत्नी विश्वास न रखती हो, और उसके साथ रहने से प्रसन्न हो, तो वह उसे न छोड़े। और जिस स्त्री का पति विश्वास न रखता हो, और उसके साथ रहने से प्रसन्न हो; वह पति को न छोड़े। क्योंकि ऐसा पति जो विश्वास न रखता हो, वह पत्नी के कारण पवित्र ठहरता है, और ऐसी पत्नी जो विश्वास नहीं रखती, पति के कारण पवित्र ठहरती है; नहीं तो तुम्हारे बाल-बच्चे अशुद्ध होते, परन्तु अब तो पवित्र हैं। परन्तु जो पुरुष विश्वास नहीं रखता, यदि वह अलग हो, तो अलग होने दो, ऐसी दशा में कोई भाई या बहन बन्धन में नहीं; परन्तु परमेश्वर ने तो हमें मेल-मिलाप के लिये बुलाया है। क्योंकि हे स्त्री, तू क्या जानती है, कि तू अपने पति का उद्धार करा लेगी? और हे पुरुष, तू क्या जानता है कि तू अपनी पत्नी का उद्धार करा लेगा? पर जैसा प्रभु ने हर एक को बाँटा है, और जैसा परमेश्वर ने हर एक को बुलाया है; वैसा ही वह चले: और मैं सब कलीसियाओं में ऐसा ही ठहराता हूँ। जो खतना किया हुआ बुलाया गया हो, वह खतनारहित न बने: जो खतनारहित बुलाया गया हो, वह खतना न कराए। न खतना कुछ है, और न खतनारहित परन्तु परमेश्वर की आज्ञाओं को मानना ही सब कुछ है। हर एक जन जिस दशा में बुलाया गया हो, उसी में रहे। यदि तू दास की दशा में बुलाया गया हो तो चिन्ता न कर; परन्तु यदि तू स्वतंत्र हो सके, तो ऐसा ही काम कर। क्योंकि जो दास की दशा में प्रभु में बुलाया गया है, वह प्रभु का स्वतंत्र किया हुआ है और वैसे ही जो स्वतंत्रता की दशा में बुलाया गया है, वह मसीह का दास है। तुम दाम देकर मोल लिये गए हो, मनुष्यों के दास न बनो। हे भाइयों, जो कोई जिस दशा में बुलाया गया हो, वह उसी में परमेश्वर के साथ रहे।
1 कुरिन्थियों 7:1-24 सरल हिन्दी बाइबल (HSS)
अब वे विषय जिनके संबंध में तुमने मुझसे लिखकर पूछा है: पुरुष के लिए उचित तो यही है कि वह स्त्री का स्पर्श ही न करे किंतु व्यभिचार से बचने के लिए हर एक पुरुष की अपनी पत्नी तथा हर एक स्त्री का अपना पति हो. यह आवश्यक है कि पति अपनी पत्नी के प्रति अपना कर्तव्य पूरा करे तथा इसी प्रकार पत्नी भी अपने पति के प्रति. पत्नी ने अपने पति को अपने शरीर पर अधिकार दिया है, वैसे ही पति ने अपनी पत्नी को अपने शरीर पर अधिकार दिया है. पति-पत्नी एक दूसरे को शारीरिक संबंधों से दूर न रखें—सिवाय आपसी सहमति से प्रार्थना के उद्देश्य से सीमित अवधि के लिए. इसके तुरंत बाद वे दोबारा साथ हो जाएं कि कहीं संयम टूटने के कारण शैतान उन्हें परीक्षा में न फंसा ले. यह मैं सुविधा अनुमति के रूप में कह रहा हूं—आज्ञा के रूप में नहीं. वैसे तो मेरी इच्छा तो यही है कि सभी पुरुष ऐसे होते जैसा स्वयं मैं हूं किंतु परमेश्वर ने तुममें से हर एक को भिन्न-भिन्न क्षमताएं प्रदान की हैं. अविवाहितों तथा विधवाओं से मेरा कहना है कि वे अकेले ही रहें—जैसा मैं हूं किंतु यदि उनके लिए संयम रखना संभव नहीं तो वे विवाह कर लें—कामातुर होकर जलते रहने की बजाय विवाह कर लेना ही उत्तम है. विवाहितों के लिए मेरा निर्देश है—मेरा नहीं परंतु प्रभु का: पत्नी अपने पति से संबंध न तोड़े. यदि पत्नी का संबंध टूट ही जाता है तो वह दोबारा विवाह न करे या पति से मेल-मिलाप कर ले. पति अपनी पत्नी का त्याग न करे. मगर बाकियों से मेरा कहना है कि यदि किसी साथी विश्वासी की पत्नी विश्वासी न हो और वह उसके साथ रहने के लिए सहमत हो तो पति उसका त्याग न करे. यदि किसी स्त्री का पति विश्वासी न हो और वह उसके साथ रहने के लिए राज़ी हो तो पत्नी उसका त्याग न करे; क्योंकि अविश्वासी पति अपनी विश्वासी पत्नी के कारण पवित्र ठहराया जाता है. इसी प्रकार अविश्वासी पत्नी अपने विश्वासी पति के कारण पवित्र ठहराई जाती है. यदि ऐसा न होता तो तुम्हारी संतान अशुद्ध रह जाती; किंतु इस स्थिति में वह परमेश्वर के लिए अलग की गई है. फिर भी यदि अविश्वासी दंपति अलग होना चाहे तो उसे हो जाने दिया जाए. कोई भी विश्वासी भाई या विश्वासी बहन इस बंधन में बंधे रहने के लिए बाध्य नहीं. परमेश्वर ने हमें शांति से भरे जीवन के लिए बुलाया है. पत्नी यह संभावना कभी भुला न दे: पत्नी अपने पति के उद्धार का साधन हो सकती है, वैसे ही पति अपनी पत्नी के उद्धार का. परमेश्वर ने जिसे जैसी स्थिति में रखा है तथा जिस रूप में उसे बुलाया है, वह उसी में बना रहे. सभी कलीसियाओं के लिए मेरा यही निर्देश है. क्या किसी ऐसे व्यक्ति को बुलाया गया है, जिसका पहले से ही ख़तना हुआ था? वह अब खतना-रहित न बने. क्या किसी ऐसे व्यक्ति को बुलाया गया है, जो ख़तना रहित है? वह अपना ख़तना न कराए. न तो ख़तना कराने का कोई महत्व है और न ख़तना रहित होने का. महत्व है तो मात्र परमेश्वर की आज्ञापालन का. हर एक उसी अवस्था में बना रहे, जिसमें उसको बुलाया गया था. क्या तुम्हें उस समय बुलाया गया था, जब तुम दास थे? यह तुम्हारे लिए चिंता का विषय न हो किंतु यदि दासत्व से स्वतंत्र होने का सुअवसर आए तो इस सुअवसर का लाभ अवश्य उठाओ. वह, जिसको उस समय बुलाया गया, जब वह दास था, अब प्रभु में स्वतंत्र किया हुआ व्यक्ति है; इसी प्रकार, जिसको उस समय बुलाया गया, जब वह स्वतंत्र था, अब वह मसीह का दास है. तुम दाम देकर मोल लिए गए हो इसलिये मनुष्य के दास न बन जाओ. प्रिय भाई बहनो, तुममें से हर एक उसी अवस्था में, जिसमें उसे बुलाया गया था, परमेश्वर के साथ जुड़ा रहे.