हे मेरे पुत्र, मेरी बातों को माना कर, और मेरी आज्ञाओं को अपने मन में रख छोड़। मेरी आज्ञाओं को मान, इस से तू जीवित रहेगा, और मेरी शिक्षा को अपनी आंख की पुतली जान; उन को अपनी उंगलियों में बान्ध, और अपने हृदय की पटिया पर लिख ले। बुद्धि से कह कि, तू मेरी बहिन है, और समझ को अपनी साथिन बना; तब तू पराई स्त्री से बचेगा, जो चिकनी चुपड़ी बातें बोलती है॥ मैं ने एक दिन अपने घर की खिड़की से, अर्थात अपने झरोखे से झांका, तब मैं ने भोले लोगों में से एक निर्बुद्धि जवान को देखा; वह उस स्त्री के घर के कोने के पास की सड़क पर चला जाता था, और उस ने उसके घर का मार्ग लिया। उस समय दिन ढल गया, और संध्याकाल आ गया था, वरन रात का घोर अन्धकार छा गया था। और उस से एक स्त्री मिली, जिस का भेष वेश्या का सा था, और वह बड़ी धूर्त थी। वह शान्ति रहित और चंचल थी, और अपने घर में न ठहरती थी; कभी वह सड़क में, कभी चौक में पाई जाती थी, और एक एक कोने पर वह बाट जोहती थी। तब उस ने उस जवान को पकड़ कर चूमा, और निर्लज्जता की चेष्टा कर के उस से कहा
नीतिवचन 7 पढ़िए
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सभी संस्करण की तुलना करें: नीतिवचन 7:1-13
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