नहेमायाह 2:1-9

नहेमायाह 2:1-9 HHBD

अर्तक्षत्र राजा के बीसवें वर्ष के नीसान नाम महीने में, जब उसके साम्हने दाखमधु था, तब मैं ने दाखमधु उठा कर राजा को दिया। इस से पहिले मैं उसके साम्हने कभी उदास न हुआ था। तब राजा ने मुझ से पूछा, तू तो रोगी नहीं है, फिर तेरा मुंह क्यों उतरा है? यह तो मन ही की उदासी होगी। तब मैं अत्यन्त डर गया। और राजा से कहा, राजा सदा जीवित रहे! जब वह नगर जिस में मेरे पुरखाओं की कबरें हैं, उजाड़ पड़ा है और उसके फाटक जले हुए हैं, तो मेरा मुंह क्यों न उतरे? राजा ने मुझ से पूछा, फिर तू क्या मांगता है? तब मैं ने स्वर्ग के परमेश्वर से प्रार्थना कर के, राजा से कहा; यदि राजा को भाए, और तू अपने दास से प्रसन्न हो, तो मुझे यहूदा और मेरे पुरखाओं की कबरों के नगर को भेज, ताकि मैं उसे बनाऊं। तब राजा ने जिसके पास रानी भी बैठी थी, मुझ से पूछा, तू कितने दिन तक यात्रा में रहेगा? और कब लैटेगा? सो राजा मुझे भेजने को प्रसन्न हुआ; और मैं ने उसके लिये एक समय नियुक्त किया। फिर मैं ने राजा से कहा, यदि राजा को भाए, तो महानद के पार के अधिपतियों के लिये इस आशय की चिट्ठियां मुझे दी जाएं कि जब तक मैं यहूदा को न पहुंचूं, तब तक वे मुझे अपने अपने देश में से हो कर जाने दें। और सरकारी जंगल के रख वाले आसाप के लिये भी इस आशय की चिट्ठी मुझे दी जाए ताकि वह मुझे भवन से लगे हुए राजगढ़ की कडिय़ों के लिये, और शहरपनाह के, और उस घर के लिये, जिस में मैं जा कर रहूंगा, लकड़ी दे। मेरे परमेश्वर की कृपादृष्टि मुझ पर थी, इसलिये राजा ने यह बिनती ग्रहण किया। तब मैं ने महानद के पार के अधिपतियों के पास जा कर उन्हें राजा की चिट्ठियां दीं। राजा ने मेरे संग सेनापति और सवार भी भेजे थे।