अपने पिता की यह बात सुनते ही ऐसाव ने अत्यन्त ऊंचे और दु:ख भरे स्वर से चिल्लाकर अपने पिता से कहा, हे मेरे पिता, मुझ को भी आशीर्वाद दे। उसने कहा, तेरा भाई धूर्तता से आया, और तेरे आशीर्वाद को लेके चला गया। उसने कहा, क्या उसका नाम याकूब यथार्थ नहीं रखा गया? उसने मुझे दो बार अड़ंगा मारा, मेरा पहिलौठे का अधिकार तो उसने ले ही लिया था: और अब देख, उसने मेरा आशीर्वाद भी ले लिया है: फिर उसने कहा, क्या तू ने मेरे लिये भी कोई आशीर्वाद नहीं सोच रखा है? इसहाक ने ऐसाव को उत्तर देकर कहा, सुन, मैं ने उसको तेरा स्वामी ठहराया, और उसके सब भाइयों को उसके आधीन कर दिया, और अनाज और नया दाखमधु देकर उसको पुष्ट किया है: सो अब, हे मेरे पुत्र, मैं तेरे लिये क्या करूं? ऐसाव ने अपने पिता से कहा हे मेरे पिता, क्या तेरे मन में एक ही आशीर्वाद है? हे मेरे पिता, मुझ को भी आशीर्वाद दे: यों कह कर ऐसाव फूट फूट के रोया। उसके पिता इसहाक ने उससे कहा, सुन, तेरा निवास उपजाऊ भूमि पर हो, और ऊपर से आकाश की ओस उस पर पड़े॥ और तू अपनी तलवार के बल से जीवित रहे, और अपने भाई के आधीन तो होए, पर जब तू स्वाधीन हो जाएगा, तब उसके जूए को अपने कन्धे पर से तोड़ फेंके।
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