उन बातों के विषय में जो तुम ने लिखीं, यह अच्छा है, कि पुरूष स्त्री को न छुए। परन्तु व्यभिचार के डर से हर एक पुरूष की पत्नी, और हर एक स्त्री का पति हो। पति अपनी पत्नी का हक पूरा करे; और वैसे ही पत्नी भी अपने पति का। पत्नी को अपनी देह पर अधिकार नहीं पर उसके पति का अधिकार है; वैसे ही पति को भी अपनी देह पर अधिकार नहीं, परन्तु पत्नी को। तुम एक दूसरे से अलग न रहो; परन्तु केवल कुछ समय तक आपस की सम्मति से कि प्रार्थना के लिये अवकाश मिले, और फिर एक साथ रहो, ऐसा न हो, कि तुम्हारे असंयम के कारण शैतान तुम्हें परखे। परन्तु मैं जो यह कहता हूं वह अनुमति है न कि आज्ञा। मैं यह चाहता हूं, कि जैसा मैं हूं, वैसा ही सब मनुष्य हों; परन्तु हर एक को परमेश्वर की ओर से विशेष विशेष वरदान मिले हैं; किसी को किसी प्रकार का, और किसी को किसी और प्रकार का॥ परन्तु मैं अविवाहितों और विधवाओं के विषय में कहता हूं, कि उन के लिये ऐसा ही रहना अच्छा है, जैसा मैं हूं। परन्तु यदि वे संयम न कर सकें, तो विवाह करें; क्योंकि विवाह करना कामातुर रहने से भला है।
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