तीतुस 1:8-16

तीतुस 1:8-16 HERV

बल्कि उसे तो अतिथियों की आवभगत करने वाला, नेकी को चाहने वाला, विवेकपूर्ण, धर्मी, भक्त तथा अपने पर नियन्त्रण रखने वाला होना चाहिए। उसे उस विश्वास करने योग्य संदेश को दृढ़ता से धारण किये रहना चाहिए जिसकी उसे शिक्षा दी गयी है, ताकि वह लोगों को सद्शिक्षा देकर उन्हें प्रबोधित कर सके। तथा जो इसके विरोधी हों, उनका खण्डन कर सके। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि बहुत से लोग विद्रोही होकर व्यर्थ की बातें बनाते हुए दूसरों को भटकाते हैं। मैं विशेष रूप से यहूदी पृष्ठभूमि के लोगों का उल्लेख कर रहा हूँ। उनका तो मुँह बन्द किया ही जाना चाहिए। क्योंकि वे जो बातें नहीं सिखाने की हैं, उन्हें सिखाते हुए घर के घर बिगाड़ रहे हैं। बुरे रास्तों से धन कमाने के लिये ही वे ऐसा करते हैं। एक क्रेते के निवासी ने अपने लोगों के बारे में स्वयं कहा है, “क्रेते के निवासी सदा झूठ बोलते हैं, वे जंगली पशु हैं, वे आलसी हैं, पेटू हैं।” यह कथन सत्य है, इसलिए उन्हें बलपूर्वक डाँटो-फटकारो ताकि उनका विश्वास पक्का हो सके। यहूदियों के पुराने वृत्तान्तों पर और उन लोगों के आदेशों पर, जो सत्य से भटक गये हैं, कोई ध्यान मत दो। पवित्र लोगों के लिये सब कुछ पवित्र है, किन्तु अशुद्ध और जिनमें विश्वास नहीं है, उनके लिये कुछ भी पवित्र नहीं है। वे परमेश्वर को जानने का दावा करते हैं। किन्तु उनके कर्म दर्शाते हैं कि वे उसे जानते ही नहीं। वे घृणित और आज्ञा का उल्लंघन करने वाले हैं। तथा किसी भी अच्छे काम को करने में वे असमर्थ हैं।

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