हे स्वामी, तू अनादि काल से हमारा घर (सुरक्षास्थल) रहा है। हे परमेश्वर, तू पर्वतों से पहले, धरती से पहले था, कि इस जगत के पहले ही परमेश्वर था। तू सर्वदा ही परमेश्वर रहेगा। तू ही इस जगत में लोगों को लाता है। फिर से तू ही उनको धूल में बदल देता है। तेरे लिये हजार वर्ष बीते हुए कल जैसे है, व पिछली रात जैसे है। तू हमारा जीवन सपने जैसा बुहार देता है और सुबह होते ही हम चले जाते है। हम ऐसे घास जैसे है, जो सुबह उगती है और वह शाम को सूख कर मुरझा जाती है।
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