हे मेरे पुत्र, मेरे वचनों को पाल और अपने मन में मेरे आदेश संचित कर। मेरे आदेशों का पालन करता रहा तो तू जीवन पायेगा। तू मेरे उपदेशों को अपनी आँखों की पुतली सरीखा सम्भाल कर रख। उनको अपनी उंगलियों पर बाँध ले, तू अपने हृदय पटल पर उनको लिख ले। बुद्ध से कह, “तू मेरी बहन है” और तू समझ बूझ को अपनी कुटुम्बी जन कह। वे ही तुझको उस कुलटा से और स्वेच्छाचारिणी पत्नी के लुभावनें वचनों से बचायेंगे। एक दिन मैंने अपने घर की खिड़की के झरोखे से झाँका, सरल युवकों के बीच एक ऐसा नवयुवक देखा जिसको भले—बुरे की पहचान नहीं थी। वह उसी गली से होकर, उसी कुलटा के नुक्कड़ के पास से जा रहा था। वह उसके ही घर की तरफ बढ़ता जा रहा था। सूरज शाम के धुंधलके में डूबता था, रात के अन्धेरे की तहें जमती जाती थी। तभी कोई कामिनी उससे मिलने के लिये निकल कर बाहर आई। वह वेश्या के वेश में सजी हुई थी। उसकी इच्छाओं में कपट छुपा था। वह वाचाल और निरंकुश थी। उसके पैर कभी घर में नहीं टिकते थे। वह कभी—कभी गलियों में, कभी चौराहों पर, और हर किसी नुक्कड़ पर घात लगाती थी। उसने उसे रोक लिया और उसे पकड़ा। उसने उसे निर्लज्ज मुख से चूम लिया, फिर उससे बोली
नीतिवचन 7 पढ़िए
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सभी संस्करण की तुलना करें: नीतिवचन 7:1-13
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