नीतिवचन 22:1-16

नीतिवचन 22:1-16 HERV

अच्छा नाम अपार धन पाने से योग्य है। चाँदी, सोने से, प्रशंसा का पात्र होना अधिक उत्तम है। धनिकों में निर्धनों में यह एक समता है, यहोवा ही इन सब ही का सिरजन हार है। कुशल जन जब किसी विपत्ति को देखता है, उससे बचने के लिये इधर उधर हो जाता किन्तु मूर्ख उसी राह पर बढ़ता ही जाता है। और वह इसके लिये दुःख ही उठाता है। जब व्यक्ति विनम्र होता है यहोवा का भय धन दौलत, आदर और जीवन उपजता है। कुटिल की राहें काँटों से भरी होती है और वहाँ पर फंदे फैले होते हैं; किन्तु जो निज आत्मा की रक्षा करता है वह तो उनसे दूर ही रहता है। बच्चे को यहोवा की राह पर चलाओ वह बुढ़ापे में भी उस से भटकेगा नहीं। धनी दरिद्रों पर शासन करते हैं। उधार लेने वाला, देनेवालों का दास होता है। ऐसा मनुष्य जो दुष्टता के बीज बोता है वह तो संकट की फसल काटेगा; और उसकी क्रोध की लाठी नष्ट हो जायेगी। उदार मन का मनुष्य स्वयं ही धन्य होगा, क्योंकि वह गरीब जन के साथ बाँट कर खाता है। निन्दक को दूर कर तो कलह दूर होगा। इससे झगड़े और अपमान मिट जाते हैं। वह जो पवित्र मन को प्रेम करता है और जिसकी वाणी मनोहर होती है उसका तो राजा भी मित्र बन जाता है। यहोवा सदा ज्ञान का ध्यान रखता है; किन्तु वह विश्वासघाती के वचन विफल करता। काम नहीं करने के बहाने बनाता हुआ आलसी कहता है, “बाहर बैठा है सिंह” या “गलियों में मुझे मार डाला जायेगा।” व्यभिचार का पाप ऐसा होता है जैसे हो कोई जाल। यहोवा उसके बहुत कुपित होगा जो भी इस जाल में गिरेगा। बच्चे शैतानी करते रहते हैं किन्तु अनुशासन की छड़ी ही उनको दूर कर देती। ऐसा मनुष्य जो अपना धन बढ़ाने गरीब को दबाता है; और वह, जो धनी को उपहार देता, दोनों ही ऐसे जन निर्धन हो जाते हैं।

नीतिवचन 22 पढ़िए