जो उदार मुक्त भाव से दान देता है, उसका लाभ तो सतत बढ़ता ही जाता है, किन्तु जो अनुचित रूप से सहेज रखते, उनका तो अंत बस दरिद्रता होता। उदार जन तो सदा, फूलेगा फलेगा और जो दूसरों की प्यास बुझायेगा उसकी तो प्यास अपने आप ही बुझेगी। अन्न का जमाखोर लोगों की गाली खाता, किन्तु जो उसे बेचने को राजी होता है उसके सिर वरदान का मुकुट से सजता है। जो भलाई पाने को जतन करता है वही यश पाता है किन्तु जो बुराई के पीछे पड़ा रहता उसके तो हाथ बस बुराई ही लगती है। जो कोई निज धन का भरोसा करता है, झड़ जायेगा वह निर्जीव सूखे पत्ते सा; किन्तु धर्मी जन नयी हरी कोपल सा हरा—भरा ही रहेगा। जो अपने घराने पर विपत्ति लायेगा, दान में उसे वायु मिलेगा और मूर्ख, बुद्धिमान का दास बनकर रहेगा। धर्मी का कर्म—फल “जीवन का वृक्ष” है, और जो जन मनों को जीत लेता है, वही बुद्धिमान है। यदि इस धरती पर धर्मी जन अपना उचित प्रतिफल पाते हैं, तो फिर पापी और परमेश्वर विहीन लोग कितना अपने कुकर्मो का फल यहाँ पायेंगे।
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