उस समय वहाँ उपस्थित कुछ लोगों ने यीशु को उन गलीलियों के बारे में बताया जिनका रक्त पिलातुस ने उनकी बलियों के साथ मिला दिया था। सो यीशु ने उन से कहा, “तुम क्या सोचते हो कि ये गलीली दूसरे सभी गलीलियों से बुरे पापी थे क्योंकि उन्हें ये बातें भुगतनी पड़ीं? नहीं, मैं तुम्हें बताता हूँ, यदि तुम मन नहीं, फिराओगे तो तुम सब भी वैसी ही मौत मरोगे जैसी वे मरे थे। या उन अट्ठारह व्यक्तियों के विषय में तुम क्या सोचते हो जिनके ऊपर शीलोह के बुर्ज ने गिर कर उन्हें मार डाला। क्या सोचते हो, वे यरूशलेम में रहने वाले दूसरे सभी व्यक्तियों से अधिक अपराधी थे? नहीं, मैं तुम्हें बताता हूँ कि यदि तुम मन न फिराओगे तो तुम सब भी वैसे ही मरोगे।” फिर उसने यह दृष्टान्त कथा कही: “किसी व्यक्ति ने अपनी दाख की बारी में अंजीर का एक पेड़ लगाया हुआ था सो वह उस पर फल खोजता आया पर उसे कुछ नहीं मिला। इस पर उसने माली से कहा, ‘अब देख मैं तीन साल से अंजीर के इस पेड़ पर फल ढूँढ़ता आ रहा हूँ किन्तु मुझे एक भी फल नहीं मिला। सो इसे काट डाल। यह धरती को यूँ ही व्यर्थ क्यों करता रहे?’ माली ने उसे उत्तर दिया, ‘हे स्वामी, इसे इस साल तब तक छोड़ दे, जब तक मैं इसके चारों तरफ गढ़ा खोद कर इसमें खाद लगाऊँ।
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