किन्तु मूसा के ससुर ने उससे कहा, “जिस प्रकार तुम यह कर रहे हो, ठीक नहीं है। तुम्हारे अकेले के लिए यह काम अत्याधिक है। इससे तुम थक जाते हो और इससे लोग भी थक जाते हैं। तुम यह काम स्वयं अकेले नहीं कर सकते। मैं तुम्हें कुछ सुझाव दूँगा। मैं तुम्हें बताऊँगा कि तुम्हें क्या करना चाहिए। मेरी प्रार्थना है कि परमेश्वर तुम्हारा साथ देगा। जो तुम्हें करना चाहिए वह यह है। तुम्हें परमेश्वर के सामने लोगों का प्रतिनिधित्व करते रहना चाहिए, और तुम्हें उनके इन विवादों और समस्याओं को परमेश्वर के सामने रखना चाहिए। तुम्हें परमेश्वर के नियमों और उपदेशों की शिक्षा लोगों को देनी चाहिए। लोगों को चेतावनी दो कि वे नियम न तोड़ें। लोगों को जीने की ठीक राह बताओ। उन्हें बताओ कि वे क्या करें। किन्तु तुम्हें लोगों में से अच्छे लोगों को चुनना चाहिए। “तुम्हें अपने विश्वासपात्र आदमियों का चुनाव करना चाहिए अर्थात् उन आदमियों का जो परमेश्वर का सम्मान करते हों। उन आदमियों को चुनो जो धन के लिए अपना निर्णय न बदलें। इन आदमियों को लोगों का प्रशासक बनाओ। हज़ार, सौ, पचास और दस लोगों पर भी प्रशासक होने चाहिए। इन्हीं प्रशासकों को लोगों का न्याय करने दो। यदि कोई बहुत ही गंभीर मामला हो तो वे प्रशासक निर्णय के लिए तुम्हारे पास आ सकते हैं। किन्तु अन्य मामलों का निर्णय वे स्वयं ही कर सकते हैं। इस प्रकार यह तुम्हारे लिए अधिक सरल होगा। इसके अतिरिक्त, ये तुम्हारे काम में हाथ बटा सकेंगे। यदि तुम यहोवा की इच्छानुसार ऐसा करते हो तब तुम अपना कार्य करते रहने योग्य हो सकोगे। और इसके साथ ही साथ सभी लोग अपनी समस्याओं के हल हो जाने से शान्तिपूर्वक घर जा सकेंगे।” इसलिए मूसा ने वैसा ही किया जैसा यित्रो ने कहा था।
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