एस्तेर 3:7-15

एस्तेर 3:7-15 HERV

महाराजा क्षयर्ष के राज्य के बारहवें वर्ष में नीसान नाम के पहले महीने में विशेष दिन और विशेष महीने चुनने के लिये हामान ने पासे फेंके और इस तरह अदार नाम का बारहवाँ महीना चुन लिया गया। (उन दिनों लाटरी निकालने के ये पासे, “पुर” कहलाया करते थे।) फिर हामान महाराजा क्षयर्ष के पास आया और उससे बोला, “हे महाराजा क्षयर्ष तुम्हारे राज्य के हर प्रान्त में लोगों के बीच एक विशेष समूह के लोग फैले हुए हैं। ये लोग अपने आप को दूसरे लोगों से अलग रखते हैं। इन लोगों के रीतिरिवाज भी दूसरे लोगों से अलग हैं और ये लोग राजा के नियमों का पालन भी नहीं करते हैं। ऐसे लोगों को अपने राज्य में रखने की अनुमति देना महाराज के लिये अच्छा नहीं हैं। “यदि महाराज को अच्छा लगे तो मेरे पास एक सुझाव है: उन लोगों को नष्ट कर डालने के लिये आज्ञा दी जाये। इसके लिये मैं महाराज के कोष में दस हजार चाँदी के सिक्के जमा कर दूँगा। यह धन उन लोगों को भुगतान के लिये होगा जो इस काम को करेंगे।” इस प्रकार महाराजा ने राजकीय अंगूठी अपनी अंगुली से निकाली और उसे हामान को सौंप दिया। हामान अगागी हम्मदाता का पुत्र था। वह यहूदियों का शत्रु था। इसके बाद महाराजा ने हामान से कहा, “यह धन अपने पास रखो और उन लोगों के साथ जो चाहते हो, करो।” फिर उस पहले महीने के तेरहवें दिन महाराजा के सचिवों को बुलाया गया। उन्होंने हामान के सभी आदेशों को हर प्रांत की लिपि और विभिन्न लोगों की भाषा में अलग—अलग लिख दिया। साथ ही उन्होंने उन आदेशों को प्रत्येक कबीले के लोगों की भाषा में भी लिख दिया। उन्होंने राजा के मुखियाओं, विभिन्न प्रांतों के राज्यपालों अलग अलग कबीलों के मुखियाओं के नाम पत्र लिख दिये। ये पत्र उन्होंने स्वयं महाराजा क्षयर्ष की ओर से लिखे थे और आदेशों को स्वयं महाराजा की अपनी अंगूठी से अंकित किया गया था। संदेशवाहक राजा के विभिन्न प्रांतों में उन पत्रों को ले गये। इन पत्रों में सभी यहूदियों के सम्पूर्ण विनाश, हत्या और बर्बादी के राज्यादेश थे। इसका आशा था कि युवा, वृद्ध, स्त्रियाँ और नन्हें बच्चे तक समाप्त कर दिये जायें। आज्ञा यह थी कि सभी यहूदियों को बस एक ही दिन मौत के घाट उतार दिया जाये। वह दिन था अदार नाम के बारहवें महीने की तेरहवीं तारीख़ को था और यह आदेश भी दिया गया था कि यहूदियों के पास जो कुछ भी हो, उसे ले लिया जाये। इन पत्रों की प्रतियाँ उस आदेश के साथ एक नियम के रूप में दी जानी थीं। हर प्रांत में इसे एक नियम बनाया जाना था। राज्य में बसी प्रत्येक जाति के लोगों में इसकी घोषणा की जानी थी, ताकि वे सभी लोग उस दिन के लिये तैयार रहें। महाराजा की आज्ञा से संदेश वाहक तुरन्त चल दिये। राजधानी नगरी शूशन में यह आज्ञा दे दी गयी। महाराजा और हामान तो दाखमधु पीने के लिए बैठ गये किन्तु शूशन नगर में घबराहट फैल गयी।