एक दिन एलीशा शूनेम को गया। शूनेम में एक महत्वपूर्ण स्त्री रहती थी। इस स्त्री ने एलीशा से कहा कि वह ठहरे और उसके घर भोजन करे। इसलिये जब भी एलीशा उस स्थान से होकर जाता था तब भोजन करने के लिये वहाँ रूकता था। उस स्त्री ने अपने पति से कहा, “देखो मैं समझती हूँ कि एलीशा परमेश्वर का जन है। वह सदा हमारे घर होकर जाता है। कृपया हम लोग एक कमरा एलीशा के लिये छत पर बनाएं। इस कमरे में हम एक बिछौना लगा दें। उसमें हम लोग एक मेज, एक कुर्सी और एक दीपाधार रख दें। तब जब वह हमारे यहाँ आए तो वह इस कमरे को अपने रहने के लिये रख सकता है।” एक दिन एलीशा उस स्त्री के घर आया। वह उस कमरे में गया और वहाँ आराम किया। एलीशा ने अपने सेवक गेहजी से कहा, “शूनेमिन स्त्री को बुलाओ।” सेवक ने शूनेमिन स्त्री को बुलाया और वह उसके सामने आ खड़ी हूई। एलीशा ने अपने सेवक से कहा—अब इस स्त्री से कहो, “देखो हम लोगों की देखभाल के लिये तुमने यथासम्भव अच्छा किया है। हम लोग तुम्हारे लिये क्या करें क्या तुम चाहती हो कि हम लोग तुम्हारे लिये राजा या सेना के सेनापती से बात करें” उस स्त्री ने उत्तर दिया, “मैं यहाँ बहुत अच्छी तरह अपने लोगों में रह रही हूँ।” एलीशा ने गेहजी से कहा, “हम उसके लिये क्या कर सकते हैं” गेहजी ने कहा, “मैं जानता हूँ कि उसका पुत्र नहीं है और उसका पति बूढ़ा है।” तब एलीशा ने कहा, “उसे बुलाओ।” अतः गेहजी ने उस स्त्री को बुलाया। वह आई और उसके दरवाजे के पास खड़ी हो गई। एलीशा ने स्त्री से कहा, “अगले बसन्त में इस समय तुम अपने पुत्र को गले से लगा रही होगी।” उस स्त्री ने कहा, “नहीं महोदय! परमेश्वर के जन, मुझसे झूठ न बोलो।” किन्तु वह स्त्री गर्भवती हुई। उसने अगले बसन्त में एक पुत्र को जन्म दिया, जैसा एलीशा ने कहा था।
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