1 कुरिन्थियों 7:1-9

1 कुरिन्थियों 7:1-9 HERV

अब उन बातों के बारे में जो तुमने लिखीं थीं: अच्छा यह है कि कोई पुरुष किसी स्त्री को छुए ही नहीं। किन्तु यौन अनैतिकता की घटनाओं की सम्भावनाओं के कारण हर पुरुष की अपनी पत्नी होनी चाहिये और हर स्त्री का अपना पति। पति को चाहिये कि पत्नी के रूप में जो कुछ पत्नी का अधिकार बनता है, उसे दे। और इसी प्रकार पत्नी को भी चाहिये कि पति को उसका यथोचित प्रदान करे। अपने शरीर पर पत्नी का कोई अधिकार नहीं हैं बल्कि उसके पति का है। और इसी प्रकार पति का भी उसके अपने शरीर पर कोई अधिकार नहीं है, बल्कि उसकी पत्नी का है। अपने आप को प्रार्थना में समर्पित करने के लिये थोड़े समय तक एक दूसरे से समागम न करने की आपसी सहमती को छोड़कर, एक दूसरे को संभोग से वंचित मत करो। फिर आत्म-संयम के अभाव के कारण कहीं शैतान तुम्हें किसी परीक्षा में न डाल दे, इसलिए तुम फिर समागम कर लो। मैं यह एक छूट के रूप में कह रहा हूँ, आदेश के रूप में नहीं। मैं तो चाहता हूँ सभी लोग मेरे जैसे होते। किन्तु हर व्यक्ति को परमेश्वर से एक विशेष बरदान मिला है। किसी का जीने का एक ढंग है तो दूसरे का दूसरा। अब मुझे अविवाहितों और विधवाओं के बारे में यह कहना है:यदि वे मेरे समान अकेले ही रहें तो उनके लिए यह उत्तम रहेगा। किन्तु यदि वे अपने आप पर काबू न रख सकें तो उन्हें विवाह कर लेना चाहिये; क्योंकि वासना की आग में जलते रहने से विवाह कर लेना अच्छा है।

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