राजा दाऊद ने वहाँ एक साथ इकट्ठे इस्राएल के सभी लोगों से कहा, “परमेश्वर ने मेरे पुत्र सुलैमान को चुना। सुलैमान बालक है और वह उन सब बातों को नहीं जानता जिनकी आवश्यकता उसे इस काम को करने के लिये है। किन्तु काम बुहत महत्वपूर्ण है। यह भवन लोगों के लिये नहीं है अपितु यहोवा परमेश्वर के लिये है। मैंने पूरी शक्ति से अपने परमेश्वर के मन्दिर को बनाने की योजना पर काम किया है। मैंने सोने से बनने वाली चीज़ों के लिये सोना दिया है। मैं ने चाँदी से बनने वाली चीजों के लिए चाँदी दी है। मैंने काँसे से बनने वाली चीजों के लिये काँसा दिया है। मैंने लोहे से बनने वाली चीज़ों के लिये लोहा दिया है। मैंने लकड़ी से बनने वाली चीज़ों के लिये लकड़ी दी है। मैंने नीलमणि, रत्नजटित फलकों के लिये विभिन्न रंगों के सभी प्रकार के बहुमूल्य रत्न और श्वेत संगमरमर भी दिये हैं। मैंने यहोवा के मन्दिर को बनाने के लिये ये चीजें अधिक और बहुत अधिक संख्या में दी हैं। मैं अपने परमेश्वर के मन्दिर के लिये सोने और चाँदी की एक विशेष भेंट दे रहा हूँ। मैं यह इसलिये कर रहा हूँ कि मैं सचमुच अपने परमेश्वर के मन्दिर को बनाना चाहता हूँ। मैं इस पवित्र मन्दिर को बनाने के लिये इन सब चीजों को दे रहा हूँ। मैंने ओपीर से एक सौ टन शुद्ध सोना दिया है। मैंने दो सौ साठ टन शुद्ध चाँदी दी है। चाँदी मन्दिर के भवनों की दीवारों के ऊपर मढ़ने के लिये है। मैंने सोना और चाँदी उन सब चीजों के लिये दी हैं जो सोने और चाँदी की बनी होती हैं। मैं ने सोना और चाँदी दिया है जिनसे कुशल कारीगर मन्दिर के लिये सभी विभिन्न प्रकार की चीज़ें बना सकेंगे। अब ईस्राएल के लोगो आप लोगों में से कितने आज यहोवा के लिये अपने को अर्पित करने के लिये तैयार हैं?” परिवारों के प्रमुख, इस्राएल के परिवार समूहों के प्रमुख, सेनाध्याक्ष, राजा के काम करने के लिये उत्तरदायी अधिकारी, सभी तैयार थे और उन्होंने बहुमूल्य चीजें दीं। ये वे चीजें हैं जो उन्होंने परमेश्वर के गृह के लिये दीं एक सौ नब्बे टन सौना, तीन सौ पचहत्तर टन चाँदी, छःसौ पचहत्तर टन काँसा; तीन सौ पचास टन लोहा, जिन लोगों के पास कीमती रत्न थे उन्होंने यहोवा के मन्दिर के लिये दिये। यहीएल कीमती रत्नों का रक्षक बना। यहीएल गेर्शोन के परिवार में से था। लोग बहुत प्रसन्न थे क्योंकि उनके प्रमुख उतना अधिक देने में प्रसन्न थे। प्रमुख स्वतन्त्रता पूर्वक खुले दिल से देने में प्रसन्न थे। राजा दाऊद भी बहुत प्रसन्न था।
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