नीतिवचन 7:1-13

नीतिवचन 7:1-13 IRVHIN

हे मेरे पुत्र, मेरी बातों को माना कर, और मेरी आज्ञाओं को अपने मन में रख छोड़। मेरी आज्ञाओं को मान, इससे तू जीवित रहेगा, और मेरी शिक्षा को अपनी आँख की पुतली जान; उनको अपनी उँगलियों में बाँध, और अपने हृदय की पटिया पर लिख ले। बुद्धि से कह, “तू मेरी बहन है,” और समझ को अपनी कुटुम्बी बना; तब तू पराई स्त्री से बचेगा, जो चिकनी चुपड़ी बातें बोलती है। मैंने एक दिन अपने घर की खिड़की से, अर्थात् अपने झरोखे से झाँका, तब मैंने भोले लोगों में से एक निर्बुद्धि जवान को देखा; वह उस स्त्री के घर के कोने के पास की सड़क से गुजर रहा था, और उसने उसके घर का मार्ग लिया। उस समय दिन ढल गया, और संध्याकाल आ गया था, वरन् रात का घोर अंधकार छा गया था। और उससे एक स्त्री मिली, जिसका भेष वेश्या के समान था, और वह बड़ी धूर्त थी। वह शान्ति रहित और चंचल थी, और उसके पैर घर में नहीं टिकते थे; कभी वह सड़क में, कभी चौक में पाई जाती थी, और एक-एक कोने पर वह बाट जोहती थी। तब उसने उस जवान को पकड़कर चूमा, और निर्लज्जता की चेष्टा करके उससे कहा