मरकुस 11:12-25

मरकुस 11:12-25 IRVHIN

दूसरे दिन जब वे बैतनिय्याह से निकले तो उसको भूख लगी। और वह दूर से अंजीर का एक हरा पेड़ देखकर निकट गया, कि क्या जाने उसमें कुछ पाए: पर पत्तों को छोड़ कुछ न पाया; क्योंकि फल का समय न था। इस पर उसने उससे कहा, “अब से कोई तेरा फल कभी न खाए।” और उसके चेले सुन रहे थे। फिर वे यरूशलेम में आए, और वह मन्दिर में गया; और वहाँ जो लेन-देन कर रहे थे उन्हें बाहर निकालने लगा, और सर्राफों की मेजें और कबूतर के बेचनेवालों की चौकियाँ उलट दीं। और मन्दिर में से होकर किसी को बर्तन लेकर आने-जाने न दिया। और उपदेश करके उनसे कहा, “क्या यह नहीं लिखा है, कि मेरा घर सब जातियों के लिये प्रार्थना का घर कहलाएगा? पर तुम ने इसे डाकुओं की खोह बना दी है।” (लूका 19:46, यिर्म. 7:11) यह सुनकर प्रधान याजक और शास्त्री उसके नाश करने का अवसर ढूँढ़ने लगे; क्योंकि उससे डरते थे, इसलिए कि सब लोग उसके उपदेश से चकित होते थे। और साँझ होते ही वे नगर से बाहर चले गए। फिर भोर को जब वे उधर से जाते थे तो उन्होंने उस अंजीर के पेड़ को जड़ तक सूखा हुआ देखा। पतरस को वह बात स्मरण आई, और उसने उससे कहा, “हे रब्बी, देख! यह अंजीर का पेड़ जिसे तूने श्राप दिया था सूख गया है।” यीशु ने उसको उत्तर दिया, “परमेश्वर पर विश्वास रखो। मैं तुम से सच कहता हूँ कि जो कोई इस पहाड़ से कहे, ‘तू उखड़ जा, और समुद्र में जा पड़,’ और अपने मन में सन्देह न करे, वरन् विश्वास करे, कि जो कहता हूँ वह हो जाएगा, तो उसके लिये वही होगा। इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, कि जो कुछ तुम प्रार्थना करके माँगो तो विश्वास कर लो कि तुम्हें मिल गया, और तुम्हारे लिये हो जाएगा। और जब कभी तुम खड़े हुए प्रार्थना करते हो, तो यदि तुम्हारे मन में किसी की ओर से कुछ विरोध हो, तो क्षमा करो: इसलिए कि तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा करे।