रूत 1:6-18

रूत 1:6-18 HINOVBSI

तब वह मोआब के देश में यह सुनकर कि यहोवा ने अपनी प्रजा के लोगों की सुधि ले के उन्हें भोजनवस्तु दी है, उस देश से अपनी दोनों बहुओं समेत लौट जाने को चली। अत: वह अपनी दोनों बहुओं समेत उस स्थान से जहाँ रहती थी निकली, और उन्होंने यहूदा देश को लौट जाने का मार्ग लिया। तब नाओमी ने अपनी दोनों बहुओं से कहा, “तुम अपने अपने मायके लौट जाओ। और जैसे तुम ने उनसे जो मर गए हैं और मुझ से भी प्रीति की है, वैसे ही यहोवा तुम्हारे ऊपर कृपा करे। यहोवा ऐसा करे कि तुम फिर अपने–अपने पति के घर में विश्राम पाओ।” तब उसने उन को चूमा, और वे चिल्‍ला चिल्‍लाकर रोने लगीं, और उससे कहा, “निश्‍चय हम तेरे संग तेरे लोगों के पास चलेंगी।” नाओमी ने कहा, “हे मेरी बेटियो, लौट जाओ, तुम क्यों मेरे संग चलोगी? क्या मेरी कोख में और पुत्र हैं जो तुम्हारे पति हों? हे मेरी बेटियो, लौटकर चली जाओ, क्योंकि मैं पति करने को बूढ़ी हूँ। और चाहे मैं कहती भी कि मुझे आशा है, और आज की रात मेरे पति होता भी, और मेरे पुत्र भी होते, तौभी क्या तुम उनके सयाने होने तक आशा लगाए ठहरी रहतीं? और उनके निमित्त पति करने से रुकी रहतीं? हे मेरी बेटियो, ऐसा न हो, क्योंकि मेरा दु:ख तुम्हारे दु:ख से बहुत बढ़कर है; देखो, यहोवा का हाथ मेरे विरुद्ध उठा है।” तब वे फिर से उठीं; और ओर्पा ने तो अपनी सास को चूमा, परन्तु रूत उससे अलग न हुई। तब उसने कहा, “देख, तेरी जिठानी तो अपने लोगों और अपने देवता के पास लौट गई है; इसलिये तू अपनी जिठानी* के पीछे लौट जा।” रूत बोली, “तू मुझ से यह विनती न कर, कि मुझे त्याग या छोड़कर लौट जा; क्योंकि जिधर तू जाए उधर मैं भी जाऊँगी; जहाँ तू टिके वहाँ मैं भी टिकूँगी; तेरे लोग मेरे लोग होंगे, और तेरा परमेश्‍वर मेरा परमेश्‍वर होगा; जहाँ तू मरेगी वहाँ मैं भी मरूँगी, और वहीं मुझे मिट्टी दी जाएगी। यदि मृत्यु छोड़ और किसी कारण मैं तुझ से अलग होऊँ तो यहोवा मुझ से वैसा ही वरन् उससे भी अधिक करे।” जब उसने यह देखा कि वह मेरे संग चलने को स्थिर है, तब उसने उससे और कुछ न कहा।

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