रोमियों 9:1-29

रोमियों 9:1-29 HINOVBSI

मैं मसीह में सच कहता हूँ, मैं झूठ नहीं बोल रहा और मेरा विवेक भी पवित्र आत्मा में गवाही देता है कि मुझे बड़ा शोक है, और मेरा मन सदा दुखता रहता है, क्योंकि मैं यहाँ तक चाहता था कि अपने भाइयों के लिये जो शरीर के भाव से मेरे कुटुम्बी हैं, स्वयं ही मसीह से शापित हो जाता। वे इस्राएली हैं, और लेपालकपन का अधिकार और महिमा और वाचाएँ और व्यवस्था और उपासना और प्रतिज्ञाएँ उन्हीं की हैं। पुरखे भी उन्हीं के हैं, और मसीह भी शरीर के भाव से उन्हीं में से हुआ जो सब के ऊपर परम परमेश्‍वर, युगानुयुग धन्य है। आमीन। परन्तु यह नहीं कि परमेश्‍वर का वचन टल गया, इसलिये कि जो इस्राएल के वंश हैं, वे सब इस्राएली नहीं; और न अब्राहम के वंश होने के कारण सब उसकी सन्तान ठहरे, परन्तु (लिखा है) “इसहाक ही से तेरा वंश कहलाएगा।” अर्थात् शरीर की सन्तान परमेश्‍वर की सन्तान नहीं, परन्तु प्रतिज्ञा की सन्तान वंश गिने जाते हैं। क्योंकि प्रतिज्ञा का वचन यह है : “मैं इस समय के अनुसार आऊँगा, और सारा के पुत्र होगा।” और केवल यही नहीं, परन्तु जब रिबका भी एक से अर्थात् हमारे पिता इसहाक से गर्भवती थी, और अभी तक न तो बालक जन्मे थे, और न उन्होंने कुछ भला या बुरा किया था; इसलिये कि परमेश्‍वर की मनसा जो उसके चुन लेने के अनुसार है, कर्मों के कारण नहीं परन्तु बुलानेवाले के कारण है, बनी रहे : उसने कहा, “जेठा छोटे का दास होगा।” जैसा लिखा है, “मैं ने याकूब से प्रेम किया, परन्तु एसाव को अप्रिय जाना।” इसलिये हम क्या कहें? क्या परमेश्‍वर के यहाँ अन्याय है? कदापि नहीं। क्योंकि वह मूसा से कहता है, “मैं जिस किसी पर दया करना चाहूँ उस पर दया करूँगा, और जिस किसी पर कृपा करना चाहूँ उसी पर कृपा करूँगा।” अत: यह न तो चाहनेवाले की, न दौड़नेवाले की परन्तु दया करनेवाले परमेश्‍वर की बात है। क्योंकि पवित्रशास्त्र में फ़िरौन से कहा गया, “मैं ने तुझे इसी लिये खड़ा किया है कि तुझ में अपनी सामर्थ्य दिखाऊँ, और मेरे नाम का प्रचार सारी पृथ्वी पर हो।” इसलिये वह जिस पर चाहता है उस पर दया करता है, और जिसे चाहता है उसे कठोर कर देता है। अत: तू मुझ से कहेगा, “वह फिर क्यों दोष लगाता है? कौन उसकी इच्छा का सामना करता है?” हे मनुष्य, भला तू कौन है जो परमेश्‍वर का सामना करता है? क्या गढ़ी हुई वस्तु गढ़नेवाले से कह सकती है, “तू ने मुझे ऐसा क्यों बनाया है?” क्या कुम्हार को मिट्टी पर अधिकार नहीं कि एक ही लोंदे में से एक बरतन आदर के लिये, और दूसरे को अनादर के लिये बनाए? तो इसमें कौन सी आश्‍चर्य की बात है कि परमेश्‍वर ने अपना क्रोध दिखाने और अपनी सामर्थ्य प्रगट करने की इच्छा से क्रोध के बरतनों की, जो विनाश के लिये तैयार किए गए थे, बड़े धीरज से सही; और दया के बरतनों पर, जिन्हें उसने महिमा के लिये पहले से तैयार किया, अपने महिमा के धन को प्रगट करने की इच्छा की? अर्थात् हम पर जिन्हें उसने न केवल यहूदियों में से, वरन् अन्यजातियों में से भी बुलाया। जैसा वह होशे की पुस्तक में भी कहता है, “जो मेरी प्रजा न थी, उन्हें मैं अपनी प्रजा कहूँगा; और जो प्रिया न थी, उसे प्रिया कहूँगा। और ऐसा होगा कि जिस जगह में उनसे यह कहा गया था कि तुम मेरी प्रजा नहीं हो, उसी जगह वे जीवते परमेश्‍वर की सन्तान कहलाएँगे।” और यशायाह इस्राएल के विषय में पुकारकर कहता है, “चाहे इस्राएल की सन्तानों की गिनती समुद्र के बालू के बराबर हो, तौभी उनमें से थोड़े ही बचेंगे। क्योंकि प्रभु अपना वचन पृथ्वी पर पूरा करके, धार्मिकता से शीघ्र उसे सिद्ध करेगा।” जैसा यशायाह ने पहले भी कहा था, “यदि सेनाओं का प्रभु हमारे लिये कुछ वंश न छोड़ता, तो हम सदोम के समान हो जाते, और अमोरा के सदृश ठहरते।”

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