भजन संहिता 77:1-10

भजन संहिता 77:1-10 HINOVBSI

मैं परमेश्‍वर की दोहाई चिल्‍ला चिल्‍लाकर दूँगा, मैं परमेश्‍वर की दोहाई दूँगा, और वह मेरी ओर कान लगाएगा। संकट के दिन मैं प्रभु की खोज में लगा रहा; रात को मेरा हाथ फैला रहा, और ढीला न हुआ, मुझ में शान्ति आई ही नहीं। मैं परमेश्‍वर का स्मरण कर करके कराहता हूँ; मैं चिन्ता करते करते मूर्च्छित हो चला हूँ। (सेला) तू मुझे झपकी लगने नहीं देता; मैं ऐसा घबराया हूँ कि मेरे मुँह से बात नहीं निकलती। मैं ने प्राचीनकाल के दिनों को, और युग युग के वर्षों को सोचा है। मैं रात के समय अपने गीत को स्मरण करता; और मन में ध्यान करता हूँ, और मन में भली भाँति विचार करता हूँ : “क्या प्रभु युग युग के लिये छोड़ देगा; और फिर कभी प्रसन्न न होगा? क्या उसकी करुणा सदा के लिये जाती रही? क्या उसका वचन पीढ़ी पीढ़ी के लिये निष्फल हो गया है? क्या परमेश्‍वर अनुग्रह करना भूल गया? क्या उसने क्रोध करके अपनी सब दया को रोक रखा है?” (सेला) मैं ने कहा, “यही तो मेरा दु:ख है, कि परमप्रधान का दाहिना हाथ बदल गया है।”

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