भजन संहिता 55:1-6

भजन संहिता 55:1-6 HINOVBSI

हे परमेश्‍वर, मेरी प्रार्थना की ओर कान लगा; और मेरी गिड़गिड़ाहट से मुँह न मोड़! मेरी ओर ध्यान देकर, मुझे उत्तर दे; मैं चिन्ता के मारे छटपटाता हूँ और व्याकुल रहता हूँ। क्योंकि शत्रु कोलाहल, और दुष्‍ट उपद्रव कर रहे हैं; वे मुझ पर दोषारोपण करते हैं, और क्रोध में आकर सताते हैं। मेरा मन भीतर ही भीतर संकट में है, और मृत्यु का भय मुझ में समा गया है। भय और कँपकँपी ने मुझे पकड़ लिया है, और भय के कारण मेरे रोंए रोंए खड़े हो गए हैं। तब मैं ने कहा, “भला होता कि मेरे कबूतर के से पंख होते तो मैं उड़ जाता और विश्राम पाता!