दाखमधु ठट्ठा करनेवाला और मदिरा हल्ला मचानेवाली है; जो कोई उसके कारण चूक करता है, वह बुद्धिमान नहीं। राजा का भय दिखाना, सिंह का गरजना है; जो उस पर रोष करता, वह अपने प्राण का अपराधी होता है। मुक़द्दमे से हाथ उठाना, पुरुष की महिमा ठहरती है; परन्तु सब मूढ़ झगड़ने को तैयार होते हैं। आलसी मनुष्य शीत के कारण हल नहीं जोतता; इसलिये कटनी के समय वह भीख माँगता, और कुछ नहीं पाता। मनुष्य के मन की युक्ति अथाह तो है, तौभी समझवाला मनुष्य उसको निकाल लेता है। बहुत से मनुष्य अपनी कृपा का प्रचार करते हैं; परन्तु सच्चा पुरुष कौन पा सकता है? धर्मी जो खराई से चलता रहता है, उसके पीछे उसके बाल–बच्चे धन्य होते हैं। राजा जो न्याय के सिंहासन पर बैठा करता है, वह अपनी दृष्टि ही से सब बुराई को छाँट लेता है। कौन कह सकता है कि मैं ने अपने हृदय को पवित्र किया; अथवा मैं पाप से शुद्ध हुआ हूँ? घटते–बढ़ते बटखरे और घटते–बढ़ते नपुए इन दोनों से यहोवा घृणा करता है। लड़का भी अपने कामों से पहिचाना जाता है, कि उसका काम पवित्र और सीधा है या नहीं। सुनने के लिये कान और देखने के लिये जो आँखें हैं, उन दोनों को यहोवा ने बनाया है। नींद से प्रीति न रख, नहीं तो दरिद्र हो जाएगा; आँखें खोल तब तू रोटी से तृप्त होगा। मोल लेने के समय ग्राहक, “अच्छी नहीं, अच्छी नहीं” कहता है; परन्तु चले जाने पर बड़ाई करता है। सोना और बहुत से मूँगे तो हैं; परन्तु ज्ञान की बातें अनमोल मणि ठहरी हैं।
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