नीतिवचन 17:12-22

नीतिवचन 17:12-22 HINOVBSI

बच्‍चा–छीनी–हुई–रीछनी से मिलना तो भला है, परन्तु मूढ़ता में डूबे हुए मूर्ख से मिलना भला नहीं। जो कोई भलाई के बदले में बुराई करे, उसके घर से बुराई दूर न होगी। झगड़े का आरम्भ बाँध के छेद के समान है, झगड़ा बढ़ने से पहले उसको छोड़ देना उचित है। जो दोषी को निर्दोष, और जो निर्दोष को दोषी ठहराता है, उन दोनों से यहोवा घृणा करता है। बुद्धि मोल लेने के लिये मूर्ख अपने हाथ में दाम क्यों लिए है? वह उसे चाहता ही नहीं! मित्र सब समयों में प्रेम रखता है, और विपत्ति के दिन भाई बन जाता है। निर्बुद्धि मनुष्य हाथ पर हाथ मारता है, और अपने पड़ोसी के सामने उत्तरदायी होता है। जो झगड़े–रगड़े से प्रीति रखता, वह अपराध करने से भी प्रीति रखता है, और जो अपने फाटक को बड़ा करता, वह अपने विनाश के लिये यत्न करता है। जो मन का टेढ़ा है, उसका कल्याण नहीं होता, और उलट–फेर की बात करनेवाला विपत्ति में पड़ता है। जो मूर्ख को जन्म देता है वह उससे दु:ख ही पाता है; और मूढ़ के पिता को आनन्द नहीं होता। मन का आनन्द अच्छी औषधि है, परन्तु मन के टूटने से हड्डियाँ सूख जाती हैं।

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