राजा ने मुझ से पूछा, “फिर तू क्या माँगता है?” तब मैं ने स्वर्ग के परमेश्वर से प्रार्थना करके राजा से कहा, “यदि राजा को भाए, और तू अपने दास से प्रसन्न हो, तो मुझे यहूदा और मेरे पुरखाओं की कबरों के नगर को भेज, ताकि मैं उसे बनाऊँ।” तब राजा ने जिसके पास रानी भी बैठी थी, मुझ से पूछा, “तू कितने दिन तक यात्रा में रहेगा? और कब लौटेगा?” अत: राजा मुझे भेजने को प्रसन्न हुआ; और मैं ने उसके लिये एक समय नियुक्त किया। फिर मैं ने राजा से कहा, “यदि राजा को भाए, तो महानद के पार के अधिपतियों के लिये इस आशय की चिट्ठियाँ मुझे दी जाएँ कि जब तक मैं यहूदा को न पहुँचूँ, तब तक वे मुझे अपने अपने देश में से होकर जाने दें; और सरकारी जंगल के रखवाले आसाप के लिये भी इस आशय की चिट्ठी मुझे दी जाए ताकि वह मुझे भवन से लगे हुए राजगढ़ की कड़ियों के लिये, और शहरपनाह के और उस घर के लिये, जिसमें मैं जाकर रहूँगा, लकड़ी दे।” मेरे परमेश्वर की कृपादृष्टि मुझ पर थी, इसलिये राजा ने यह विनती स्वीकार कर ली।
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