जब वह चेलों के पास आया, तो देखा कि उनके चारों ओर बड़ी भीड़ लगी है और शास्त्री उनके साथ विवाद कर रहे हैं। उसे देखते ही सब बहुत ही आश्चर्य करने लगे, और उसकी ओर दौड़कर उसे नमस्कार किया। उसने उनसे पूछा, “तुम इन से क्या विवाद कर रहे हो?” भीड़ में से एक ने उसे उत्तर दिया, “हे गुरु, मैं अपने पुत्र को, जिसमें गूँगी आत्मा समाई है, तेरे पास लाया था। जहाँ कहीं वह उसे पकड़ती है, वहीं पटक देती है : और वह मुँह में फेन भर लाता, और दाँत पीसता, और सूखता जाता है। मैं ने तेरे चेलों से कहा कि वे उसे निकाल दें, परन्तु वे निकाल न सके।” यह सुनकर उसने उनसे उत्तर देके कहा, “हे अविश्वासी लोगो, मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा? और कब तक तुम्हारी सहूँगा? उसे मेरे पास लाओ।” तब वे उसे उसके पास ले आए : और जब उसने उसे देखा, तो उस आत्मा ने तुरन्त उसे मरोड़ा; और वह भूमि पर गिरा, और मुँह से फेन बहाते हुए लोटने लगा। उसने उसके पिता से पूछा, “इसकी यह दशा कब से है?” उसने कहा, “बचपन से। उसने इसे नष्ट करने के लिये कभी आग और कभी पानी में गिराया; परन्तु यदि तू कुछ कर सके, तो हम पर तरस खाकर हमारा उपकार कर।” यीशु ने उससे कहा, “यदि तू कर सकता है? यह क्या बात है! विश्वास करनेवाले के लिए सब कुछ हो सकता है।” बालक के पिता ने तुरन्त गिड़गिड़ाकर कहा, “हे प्रभु, मैं विश्वास करता हूँ, मेरे अविश्वास का उपाय कर।”
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