सैनिक उसे किले के भीतर के आँगन में ले गए जो प्रीटोरियुम कहलाता है, और सारी पलटन को बुला लाए। तब उन्होंने उसे बैंजनी वस्त्र पहिनाया और काँटों का मुकुट गूँथकर उसके सिर पर रखा, और यह कहकर उसे नमस्कार करने लगे, “हे यहूदियों के राजा, नमस्कार!” वे उसके सिर पर सरकण्डे मारते, और उस पर थूकते, और घुटने टेककर उसे प्रणाम करते रहे। जब वे उसका ठट्ठा कर चुके, तो उस पर से बैंजनी वस्त्र उतारकर उसी के कपड़े पहिनाए; और तब उसे क्रूस पर चढ़ाने के लिये बाहर ले गए।
सिकन्दर और रूफुस का पिता शमौन, एक कुरेनी मनुष्य, जो गाँव से आ रहा था उधर से निकला; उन्होंने उसे बेगार में पकड़ा कि उसका क्रूस उठा ले चले। वे यीशु को गुलगुता नामक जगह पर, जिस का अर्थ खोपड़ी की जगह है, लाए। वहाँ उसे मुर्र मिला हुआ दाखरस देने लगे, परन्तु उस ने नहीं लिया। तब उन्होंने उसको क्रूस पर चढ़ाया और उसके कपड़ों पर चिट्ठियाँ डालकर, कि किस को क्या मिले, उन्हें बाँट लिया। और एक पहर दिन चढ़ आया था, जब उन्होंने उसको क्रूस पर चढ़ाया। और उसका दोषपत्र लिखकर उसके ऊपर लगा दिया गया कि “यहूदियों का राजा”। उन्होंने उसके साथ दो डाकू, एक उसकी दाहिनी और एक उसकी बाईं ओर क्रूस पर चढ़ाए। [तब पवित्रशास्त्र का वह वचन कि वह अपराधियों के संग गिना गया, पूरा हुआ।] और मार्ग में जानेवाले सिर हिला–हिलाकर और यह कहकर उसकी निन्दा करते थे, “वाह! मन्दिर के ढानेवाले, और तीन दिन में बनानेवाले! क्रूस पर से उतर कर अपने आप को बचा ले।” इसी रीति से प्रधान याजक भी, शास्त्रियों समेत, आपस में ठट्ठे से कहते थे, “इस ने औरों को बचाया, पर अपने को नहीं बचा सकता। इस्राएल का राजा, मसीह, अब क्रूस पर से उतर आए कि हम देखकर विश्वास करें।” और जो उसके साथ क्रूसों पर चढ़ाए गए थे, वे भी उसकी निन्दा करते थे।
दोपहर होने पर सारे देश में अन्धियारा छा गया, और तीसरे पहर तक रहा।