जब पतरस नीचे आँगन में था, तो महायाजक की दासियों में से एक वहाँ आई, और पतरस को आग तापते देख उसे टकटकी लगाकर देखा और कहने लगी, “तू भी तो उस नासरी यीशु के साथ था।” वह मुकर गया, और कहा, “मैं न ही जानता और न ही समझता हूँ कि तू क्या कह रही है।” फिर वह बाहर डेवढ़ी में गया; और मुर्ग़ ने बाँग दी। वह दासी उसे देखकर उनसे जो पास खड़े थे, फिर कहने लगी, “यह उनमें से एक है।” परन्तु वह फिर मुकर गया। थोड़ी देर बाद उन्होंने जो पास खड़े थे फिर पतरस से कहा, “निश्चय तू उनमें से एक है; क्योंकि तू गलीली भी है।” तब वह धिक्कारने और शपथ खाने लगा, “मैं उस मनुष्य को, जिसकी तुम चर्चा करते हो, नहीं जानता।” तब तुरन्त दूसरी बार मुर्ग़ ने बाँग दी। पतरस को वह बात जो यीशु ने उससे कही थी स्मरण आई : “मुर्ग़ के दो बार बाँग देने से पहले तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा।” और वह इस बात को सोचकर रोने लगा।
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