मरकुस 11:1-18

मरकुस 11:1-18 HINOVBSI

जब वे यरूशलेम के निकट, जैतून पहाड़ पर बैतफगे और बैतनिय्याह के पास आए तो उसने अपने चेलों में से दो को यह कहकर भेजा, “सामने के गाँव में जाओ, और उस में पहुँचते ही एक गदही का बच्‍चा, जिस पर कभी कोई नहीं चढ़ा, बंधा हुआ तुम्हें मिलेगा। उसे खोल लाओ। यदि तुम से कोई पूछे, ‘यह क्यों करते हो?’ तो कहना, ‘प्रभु को इस का प्रयोजन है,’ और वह शीघ्र उसे यहाँ भेज देगा।” उन्होंने जाकर उस बच्‍चे को बाहर द्वार के पास चौक में बंधा हुआ पाया, और खोलने लगे। उनमें से जो वहाँ खड़े थे, कोई कोई कहने लगे, “यह क्या करते हो, गदही के बच्‍चे को क्यों खोलते हो?” जैसा यीशु ने कहा था, वैसा ही उन्होंने उनसे कह दिया; तब लोगों ने उन्हें जाने दिया। उन्होंने बच्‍चे को यीशु के पास लाकर उस पर अपने कपड़े डाले और वह उस पर बैठ गया। तब बहुतों ने अपने कपड़े मार्ग में बिछाए और औरों ने खेतों में से डालियाँ काट काट कर फैला दीं। जो उसके आगे आगे जाते और पीछे पीछे चले आते थे, पुकार–पुकार कर कहते जाते थे, “होशाना! धन्य है वह जो प्रभु के नाम से आता है! हमारे पिता दाऊद का राज्य जो आ रहा है; धन्य है! आकाश में होशाना!” वह यरूशलेम पहुँचकर मन्दिर में आया, और चारों ओर सब वस्तुओं को देखकर बारहों के साथ बैतनिय्याह गया, क्योंकि साँझ हो गई थी। दूसरे दिन जब वे बैतनिय्याह से निकले तो उसको भूख लगी। वह दूर से अंजीर का एक हरा पेड़ देखकर निकट गया कि क्या जाने उसमें कुछ पाए : पर पत्तों को छोड़ कुछ न पाया; क्योंकि फल का समय न था। इस पर उसने उससे कहा, “अब से कोई तेरा फल कभी न खाए!” और उसके चेले सुन रहे थे। फिर वे यरूशलेम में आए, और वह मन्दिर में गया; और वहाँ जो लेन–देन कर रहे थे उन्हें बाहर निकालने लगा, और सर्राफों के पीढ़े और कबूतर बेचनेवालों की चौकियाँ उलट दीं, और मन्दिर में से किसी को बरतन लेकर आने जाने न दिया। और उपदेश करके उनसे कहा, “क्या यह नहीं लिखा है कि मेरा घर सब जातियों के लिये प्रार्थना का घर कहलाएगा? पर तुम ने इसे डाकुओं की खोह बना दी है ।” यह सुनकर प्रधान याजक और शास्त्री उसके नाश करने का अवसर ढूँढ़ने लगे; क्योंकि वे उससे डरते थे, इसलिये कि सब लोग उसके उपदेश से चकित होते थे।