वह इस भीड़ को देखकर पहाड़ पर चढ़ गया, और जब बैठ गया तो उसके चेले उसके पास आए। और वह अपना मुँह खोलकर उन्हें यह उपदेश देने लगा : “धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है। “धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं, क्योंकि वे शांति पाएँगे। “धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे। “धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं, क्योंकि वे तृप्त किए जाएँगे। “धन्य हैं वे, जो दयावन्त हैं, क्योंकि उन पर दया की जाएगी। “धन्य हैं वे, जिन के मन शुद्ध हैं, क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे। “धन्य हैं वे, जो मेल करानेवाले हैं, क्योंकि वे परमेश्वर के पुत्र कहलाएँगे। “धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है। “धन्य हो तुम, जब मनुष्य मेरे कारण तुम्हारी निन्दा करें, और सताएँ और झूठ बोल बोलकर तुम्हारे विरोध में सब प्रकार की बुरी बात कहें। तब आनन्दित और मगन होना, क्योंकि तुम्हारे लिये स्वर्ग में बड़ा फल है। इसलिये कि उन्होंने उन भविष्यद्वक्ताओं को जो तुम से पहले थे इसी रीति से सताया था।
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