मत्ती 27:1-14

मत्ती 27:1-14 HINOVBSI

जब भोर हुई तो सब प्रधान याजकों और लोगों के पुरनियों ने यीशु को मार डालने की सम्मति की। उन्होंने उसे बाँधा और ले जाकर पिलातुस हाकिम के हाथ में सौंप दिया। जब उसके पकड़वानेवाले यहूदा ने देखा कि वह दोषी ठहराया गया है तो वह पछताया और वे तीस चाँदी के सिक्‍के प्रधान याजकों और पुरनियों के पास फेर लाया और कहा, “मैं ने निर्दोष को घात के लिए पकड़वाकर पाप किया है!” उन्होंने कहा, “हमें क्या? तू ही जान।” तब वह उन सिक्‍कों को मन्दिर में फेंककर चला गया, और जाकर अपने आप को फाँसी दी। प्रधान याजकों ने उन सिक्‍कों को लेकर कहा, “इन्हें, भण्डार में रखना उचित नहीं, क्योंकि यह लहू का दाम है।” अत: उन्होंने सम्मति करके उन सिक्‍कों से परदेशियों के गाड़े जाने के लिए कुम्हार का खेत मोल ले लिया। इस कारण वह खेत आज तक लहू का खेत कहलाता है। तब जो वचन यिर्मयाह भविष्यद्वक्‍ता के द्वारा कहा गया था वह पूरा हुआ : “उन्होंने वे तीस सिक्‍के अर्थात् उस ठहराए हुए मूल्य को (जिसे इस्राएल की सन्तान में से कितनों ने ठहराया था) ले लिया*, और जैसे प्रभु ने मुझे आज्ञा दी थी वैसे ही उन्हें कुम्हार के खेत के मूल्य में दे दिया।” जब यीशु हाकिम के सामने खड़ा था तो हाकिम ने उससे पूछा, “क्या तू यहूदियों का राजा है?” यीशु ने उससे कहा, “तू आप ही कह रहा है।” जब प्रधान याजक और पुरनिए उस पर दोष लगा रहे थे, तो उसने कुछ उत्तर नहीं दिया। इस पर पिलातुस ने उससे कहा, “क्या तू नहीं सुनता कि ये तेरे विरोध में कितनी गवाहियाँ दे रहे हैं?” परन्तु उसने उसको एक बात का भी उत्तर नहीं दिया, यहाँ तक कि हाकिम को बड़ा आश्‍चर्य हुआ।