यीशु फिर उनसे दृष्टान्तों में कहने लगा, “स्वर्ग का राज्य उस राजा के समान है, जिसने अपने पुत्र का विवाह किया। और उसने अपने दासों को भेजा कि निमन्त्रित लोगों को विवाह के भोज में बुलाएँ; परन्तु उन्होंने आना न चाहा। फिर उसने और दासों को यह कहकर भेजा, ‘निमन्त्रित लोगों से कहो : देखो, मैं भोज तैयार कर चुका हूँ, मेरे बैल और पले हुए पशु मारे गए हैं, और सब कुछ तैयार है; विवाह के भोज में आओ।’ परन्तु वे उपेक्षा करके चल दिए : कोई अपने खेत को, कोई अपने व्यापार को। अन्य लोगों ने जो बच रहे थे उसके दासों को पकड़कर उनका अनादर किया और मार डाला। तब राजा को क्रोध आया, और उसने अपनी सेना भेजकर उन हत्यारों का नाश किया, और उनके नगर को फूँक दिया। तब उसने अपने दासों से कहा, ‘विवाह का भोज तो तैयार है परन्तु निमन्त्रित लोग योग्य नहीं ठहरे। इसलिये चौराहों पर जाओ और जितने लोग तुम्हें मिलें, सबको विवाह के भोज में बुला लाओ।’ अत: उन दासों ने सड़कों पर जाकर क्या बुरे क्या भले, जितने मिले, सबको इकट्ठा किया; और विवाह का घर अतिथियों से भर गया।
“जब राजा अतिथियों को देखने भीतर आया, तो उसने वहाँ एक मनुष्य को देखा, जो विवाह का वस्त्र नहीं पहिने था। उसने उससे पूछा, ‘हे मित्र; तू विवाह का वस्त्र पहिने बिना यहाँ क्यों आ गया?’ उसका मुँह बंद हो गया। तब राजा ने सेवकों से कहा, ‘इसके हाथ–पाँव बाँधकर उसे बाहर अन्धियारे में डाल दो, वहाँ रोना और दाँत पीसना होगा।’ क्योंकि बुलाए हुए तो बहुत हैं परन्तु चुने हुए थोड़े हैं।”
तब फरीसियों ने जाकर आपस में विचार किया कि उसको किस प्रकार बातों में फँसाएँ। अत: उन्होंने अपने चेलों को हेरोदियों के साथ उसके पास यह कहने को भेजा, “हे गुरु, हम जानते हैं कि तू सच्चा है, और परमेश्वर का मार्ग सच्चाई से सिखाता है, और किसी की परवाह नहीं करता, क्योंकि तू मनुष्यों का मुँह देखकर बातें नहीं करता। इसलिये हमें बता तू क्या सोचता है? कैसर को कर देना उचित है कि नहीं।” यीशु ने उनकी दुष्टता जानकर कहा, “हे कपटियो, मुझे क्यों परखते हो? कर का सिक्का मुझे दिखाओ।” तब वे उसके पास एक दीनार ले आए। उसने उनसे पूछा, “यह छाप और नाम किसका है?” उन्होंने उससे कहा, “कैसर का।” तब उसने उनसे कहा, “जो कैसर का है, वह कैसर को; और जो परमेश्वर का है, वह परमेश्वर को दो।” यह सुनकर उन्होंने अचम्भा किया, और उसे छोड़कर चले गए।