लूका 4:1-30

लूका 4:1-30 HINOVBSI

फिर यीशु पवित्र आत्मा से भरा हुआ, यरदन से लौटा; और चालीस दिन तक आत्मा के सिखाने से जंगल में फिरता रहा; और शैतान उसकी परीक्षा करता रहा। उन दिनों में उसने कुछ न खाया, और जब वे दिन पूरे हो गए, तो उसे भूख लगी। तब शैतान ने उससे कहा, “यदि तू परमेश्‍वर का पुत्र है, तो इस पत्थर से कह, कि रोटी बन जाए।” यीशु ने उसे उत्तर दिया, “लिखा है : ‘मनुष्य केवल रोटी से जीवित न रहेगा’।” तब शैतान उसे ले गया और उसको पल भर में जगत के सारे राज्य दिखाए, और उससे कहा, “मैं यह सब अधिकार, और इनका वैभव तुझे दूँगा, क्योंकि वह मुझे सौंपा गया है : और जिसे चाहता हूँ उसी को दे देता हूँ। इसलिये यदि तू मुझे प्रणाम करे, तो यह सब तेरा हो जाएगा।” यीशु ने उसे उत्तर दिया, “लिखा है : ‘तू प्रभु अपने परमेश्‍वर को प्रणाम कर; और केवल उसी की उपासना कर’।” तब उसने उसे यरूशलेम में ले जाकर मन्दिर के कंगूरे पर खड़ा किया, और उस से कहा, “यदि तू परमेश्‍वर का पुत्र है, तो अपने आप को यहाँ से नीचे गिरा दे। क्योंकि लिखा है : ‘वह तेरे विषय में अपने स्वर्गदूतों को आज्ञा देगा, कि वे तेरी रक्षा करें,’ और ‘वे तुझे हाथों हाथ उठा लेंगे, ऐसा न हो कि तेरे पाँव में पत्थर से ठेस लगे’।” यीशु ने उसको उत्तर दिया, “यह भी कहा गया है : ‘तू प्रभु अपने परमेश्‍वर की परीक्षा न करना’।” जब शैतान सब परीक्षा कर चुका, तब कुछ समय के लिये उसके पास से चला गया। फिर यीशु आत्मा की सामर्थ्य से भरा हुआ गलील को लौटा, और उसकी चर्चा आस पास के सारे देश में फैल गई। वह उनके आराधनालयों में उपदेश करता रहा, और सब उसकी बड़ाई करते थे। फिर वह नासरत में आया, जहाँ पाला पोसा गया था; और अपनी रीति के अनुसार सब्त के दिन आराधनालय में जाकर पढ़ने के लिये खड़ा हुआ। यशायाह भविष्यद्वक्‍ता की पुस्तक उसे दी गई, और उसने पुस्तक खोलकर, वह जगह निकाली जहाँ यह लिखा था : “प्रभु का आत्मा मुझ पर है, इसलिये कि उसने कंगालों को सुसमाचार सुनाने के लिये मेरा अभिषेक किया है, और मुझे इसलिये भेजा है कि बन्दियों को छुटकारे का और अंधों को दृष्‍टि पाने का सुसमाचार प्रचार करूँ और कुचले हुओं को छुड़ाऊँ, और प्रभु के प्रसन्न रहने के वर्ष का प्रचार करूँ।” तब उसने पुस्तक बन्द करके सेवक के हाथ में दे दी और बैठ गया; और आराधनालय के सब लोगों की आँखें उस पर लगी थीं। तब वह उनसे कहने लगा, “आज ही यह लेख तुम्हारे सामने पूरा हुआ है। सब ने उसे सराहा, और जो अनुग्रह की बातें उसके मुँह से निकलती थीं, उनसे अचम्भित हुए; और कहने लगे, “क्या यह यूसुफ का पुत्र नहीं?” उसने उनसे कहा, “तुम मुझ पर यह कहावत अवश्य कहोगे कि ‘हे वैद्य, अपने आप को अच्छा कर! जो कुछ हम ने सुना है कि कफरनहूम में किया गया है, उसे यहाँ अपने देश में भी कर’।” और उसने कहा, “मैं तुम से सच कहता हूँ कोई भविष्यद्वक्‍ता अपने देश में मान–सम्मान नहीं पाता। मैं तुम से सच कहता हूँ कि एलिय्याह के दिनों में जब साढ़े तीन वर्ष तक आकाश बन्द रहा, यहाँ तक कि सारे देश में बड़ा अकाल पड़ा, तो इस्राएल में बहुत सी विधवाएँ थीं। पर एलिय्याह उनमें से किसी के पास नहीं भेजा गया, केवल सैदा के सारफत में एक विधवा के पास। और एलीशा भविष्यद्वक्‍ता के समय इस्राएल में बहुत से कोढ़ी थे, पर सीरियावासी नामान को छोड़ उनमें से कोई शुद्ध नहीं किया गया।” ये बातें सुनते ही जितने आराधनालय में थे, सब क्रोध से भर गए, और उठकर उसे नगर से बाहर निकाला, और जिस पहाड़ पर उनका नगर बसा हुआ था, उसकी चोटी पर ले चले कि उसे वहाँ से नीचे गिरा दें। परन्तु वह उनके बीच में से निकलकर चला गया।

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