लूका 24:13-35

लूका 24:13-35 HINOVBSI

उसी दिन उनमें से दो जन इम्माऊस नामक एक गाँव को जा रहे थे, जो यरूशलेम से कोई सात मील की दूरी पर था। वे इन सब बातों पर जो हुई थीं, आपस में बातचीत करते जा रहे थे, और जब वे आपस में बातचीत और पूछताछ कर रहे थे, तो यीशु आप पास आकर उनके साथ हो लिया। परन्तु उनकी आँखें ऐसी बन्द कर दी गई थीं कि उसे पहिचान न सके। उसने उन से पूछा, “ये क्या बातें हैं, जो तुम चलते चलते आपस में करते हो?” वे उदास से खड़े रह गए। यह सुनकर उनमें से क्लियोपास नामक एक व्यक्‍ति ने कहा, “क्या तू यरूशलेम में अकेला परदेशी है, जो नहीं जानता कि इन दिनों में उसमें क्या क्या हुआ है?” उसने उनसे पूछा, “कौन सी बातें?” उन्होंने उस से कहा, “यीशु नासरी के विषय में जो परमेश्‍वर और सब लोगों के निकट काम और वचन में सामर्थी भविष्यद्वक्‍ता था, और प्रधान याजकों और हमारे सरदारों ने उसे पकड़वा दिया कि उस पर मृत्यु की आज्ञा दी जाए; और उसे क्रूस पर चढ़वाया। परन्तु हमें आशा थी कि यही इस्राएल को छुटकारा देगा। इन सब बातों के सिवाय इस घटना को हुए तीसरा दिन है, और हम में से कई स्त्रियों ने भी हमें आश्‍चर्य में डाल दिया है, जो भोर को कब्र पर गई थीं; और जब उसका शव न पाया तो यह कहती हुई आईं कि हम ने स्वर्गदूतों का दर्शन पाया, जिन्होंने कहा कि वह जीवित है। तब हमारे साथियों में से कई एक कब्र पर गए, और जैसा स्त्रियों ने कहा था वैसा ही पाया; परन्तु उसको न देखा।” तब उसने उनसे कहा, “हे निर्बुद्धियो, और भविष्यद्वक्‍ताओं की सब बातों पर विश्‍वास करने में मन्दमतियो! क्या अवश्य न था कि मसीह ये दु:ख उठाकर अपनी महिमा में प्रवेश करे?” तब उसने मूसा से और सब भविष्यद्वक्‍ताओं से आरम्भ करके सारे पवित्रशास्त्र में से अपने विषय में लिखी बातों का अर्थ, उन्हें समझा दिया। इतने में वे उस गाँव के पास पहुँचे जहाँ वे जा रहे थे, और उसके ढंग से ऐसा जान पड़ा कि वह आगे बढ़ना चाहता है। परन्तु उन्होंने यह कहकर उसे रोका, “हमारे साथ रह, क्योंकि संध्या हो चली है और दिन अब बहुत ढल गया है।” तब वह उनके साथ रहने के लिये भीतर गया। जब वह उनके साथ भोजन करने बैठा, तो उसने रोटी लेकर धन्यवाद किया और उसे तोड़कर उनको देने लगा। तब उनकी आँखें खुल गईं; और उन्होंने उसे पहचान लिया, और वह उनकी आँखों से छिप गया। उन्होंने आपस में कहा, “जब वह मार्ग में हम से बातें करता था और पवित्रशास्त्र का अर्थ हमें समझाता था, तो क्या हमारे मन में उत्तेजना न उत्पन्न हुई?” वे उसी घड़ी उठकर यरूशलेम को लौट गए, और उन ग्यारहों और उनके साथियों को इकट्ठे पाया। वे कहते थे, “प्रभु सचमुच जी उठा है, और शमौन को दिखाई दिया है।” तब उन्होंने मार्ग की बातें उन्हें बता दीं और यह भी कि उन्होंने उसे रोटी तोड़ते समय कैसे पहचाना।

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