ये बातें कहकर वह यरूशलेम की ओर उनके आगे आगे चला।
जब वह जैतून नामक पहाड़ पर बैतफगे और बैतनिय्याह के पास पहुँचा, तो उसने अपने चेलों में से दो को यह कहके भेजा, “सामने के गाँव में जाओ; और उसमें पहुँचते ही एक गदही का बच्चा जिस पर कभी कोई सवार नहीं हुआ, बँधा हुआ तुम्हें मिलेगा, उसे खोलकर ले आओ। यदि कोई तुम से पूछे कि क्यों खोलते हो, तो यह कह देना कि प्रभु को इसका प्रयोजन है।”
जो भेजे गए थे, उन्होंने जाकर जैसा उसने उनसे कहा था, वैसा ही पाया। जब वे गदहे के बच्चे को खोल रहे थे, तो उसके मालिकों ने उनसे पूछा, “इस बच्चे को क्यों खोलते हो?” उन्होंने कहा, “प्रभु को इसका प्रयोजन है।” वे उसको यीशु के पास ले आए, और अपने कपड़े उस बच्चे पर डालकर यीशु को उस पर बैठा दिया। जब वह जा रहा था, तो वे अपने कपड़े मार्ग में बिछाते जाते थे।
निकट आते हुए जब वह जैतून पहाड़ की ढलान पर पहुँचा, तो चेलों की सारी मण्डली उन सब सामर्थ्य के कामों के कारण जो उन्होंने देखे थे, आनन्दित होकर बड़े शब्द से परमेश्वर की स्तुति करने लगी :
“धन्य है वह राजा, जो प्रभु के नाम से
आता है!
स्वर्ग में शान्ति और आकाश मण्डल में
महिमा हो!”
तब भीड़ में से कुछ फरीसी उससे कहने लगे, “हे गुरु, अपने चेलों को डाँट।” उसने उत्तर दिया, “मैं तुम से कहता हूँ,यदि ये चुप रहे तो पत्थर चिल्ला उठेंगे।”
जब वह निकट आया तो नगर को देखकर उस पर रोया और कहा, “क्या ही भला होता कि तू, हाँ, तू ही, इसी दिन में कुशल की बातें जानता, परन्तु अब वे तेरी आँखों से छिप गई हैं। क्योंकि वे दिन तुझ पर आएँगे कि तेरे बैरी मोर्चा बाँधकर तुझे घेर लेंगे, और चारों ओर से तुझे दबाएँगे; और तुझे और तेरे बालकों को जो तुझ में हैं, मिट्टी में मिलाएँगे, और तुझ में पत्थर पर पत्थर भी न छोड़ेंगे; क्योंकि तूने उस अवसर को जब तुझ पर कृपा दृष्टि की गई न पहिचाना।”
तब वह मन्दिर में जाकर बेचनेवालों को बाहर निकालने लगा, और उनसे कहा, “लिखा है, ‘मेरा घर प्रार्थना का घर होगा,’ परन्तु तुम ने उसे डाकुओं की खोह बना दिया है।”
वह प्रतिदिन मन्दिर में उपदेश करता था; और प्रधान याजक और शास्त्री और लोगों के प्रमुख उसे नष्ट करने का अवसर ढूँढ़ते थे। परन्तु कोई उपाय न निकाल सके कि यह किस प्रकार करें, क्योंकि सब लोग बड़ी चाह से उसकी सुनते थे।