लूका 10:1-17

लूका 10:1-17 HINOVBSI

इन बातों के बाद प्रभु ने सत्तर और मनुष्य नियुक्‍त किए, और जिस–जिस नगर और जगह को वह आप जाने पर था, वहाँ उन्हें दो–दो करके अपने आगे भेजा। उसने उनसे कहा, “पके खेत बहुत हैं, परन्तु मजदूर थोड़े हैं; इसलिये खेत के स्वामी से विनती करो कि वह अपने खेत काटने को मजदूर भेज दे। जाओ; देखो, मैं तुम्हें भेड़ों के समान भेड़ियों के बीच में भेजता हूँ। इसलिये न बटुआ, न झोली, न जूते लो; और न मार्ग में किसी को नमस्कार करो। जिस किसी घर में जाओ, पहले कहो, ‘इस घर पर कल्याण हो।’ यदि वहाँ कोई कल्याण के योग्य होगा, तो तुम्हारा कल्याण उस पर ठहरेगा, नहीं तो तुम्हारे पास लौट आएगा। उसी घर में रहो, और जो कुछ उनसे मिले, वही खाओ–पीओ, क्योंकि मजदूर को अपनी मजदूरी मिलनी चाहिए; घर–घर न फिरना। जिस नगर में जाओ, और वहाँ के लोग तुम्हें उतारें, तो जो कुछ तुम्हारे सामने रखा जाए वही खाओ। वहाँ के बीमारों को चंगा करो और उनसे कहो, ‘परमेश्‍वर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुँचा है।’ परन्तु जिस नगर में जाओ, और वहाँ के लोग तुम्हें ग्रहण न करें, तो उसके बाजारों में जाकर कहो, ‘तुम्हारे नगर की धूल भी, जो हमारे पाँवों में लगी है, हम तुम्हारे सामने झाड़ देते हैं; तौभी यह जान लो कि परमेश्‍वर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुँचा है।’ मैं तुम से कहता हूँ कि उस दिन उस नगर की दशा से सदोम की दशा अधिक सहने योग्य होगी। “हाय खुराजीन! हाय बैतसैदा! जो सामर्थ्य के काम तुम में किए गए, यदि वे सूर और सैदा में किए जाते तो टाट ओढ़कर और राख में बैठकर वे कब के मन फिराते। परन्तु न्याय के दिन तुम्हारी दशा से सूर और सैदा की दशा अधिक सहने योग्य होगी। और हे कफरनहूम, क्या तू स्वर्ग तक ऊँचा किया जाएगा? तू तो अधोलोक तक नीचे जाएगा। “जो तुम्हारी सुनता है, वह मेरी सुनता है; और जो तुम्हें तुच्छ जानता है, वह मुझे तुच्छ जानता है; और जो मुझे तुच्छ जानता है, वह मेरे भेजनेवाले को तुच्छ जानता है।” वे सत्तर आनन्द करते हुए लौटे और कहने लगे, “हे प्रभु, तेरे नाम से दुष्‍टात्मा भी हमारे वश में हैं।”

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