उन दिनों में मरियम उठकर शीघ्र ही पहाड़ी देश में यहूदा के एक नगर को गई, और जकरयाह के घर में जाकर इलीशिबा को नमस्कार किया। ज्योंही इलीशिबा ने मरियम का नमस्कार सुना, त्योंही बच्चा उसके पेट में उछला, और इलीशिबा पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गई। और उसने बड़े शब्द से पुकार कर कहा, “तू स्त्रियों में धन्य है, और तेरे पेट का फल धन्य है! यह अनुग्रह मुझे कहाँ से हुआ कि मेरे प्रभु की माता मेरे पास आई? देख, ज्योंही तेरे नमस्कार का शब्द मेरे कानों में पड़ा, त्योंही बच्चा मेरे पेट में आनन्द से उछल पड़ा। धन्य है वह जिस ने विश्वास किया कि जो बातें प्रभु की ओर से उससे कही गईं, वे पूरी होंगी!” तब मरियम ने कहा, “मेरा प्राण प्रभु की बड़ाई करता है और मेरी आत्मा मेरे उद्धार करनेवाले परमेश्वर से आनन्दित हुई, क्योंकि उसने अपनी दासी की दीनता पर दृष्टि की है; इसलिये देखो, अब से सब युग–युग के लोग मुझे धन्य कहेंगे, क्योंकि उस शक्तिमान ने मेरे लिये बड़े– बड़े काम किए हैं। उसका नाम पवित्र है, और उसकी दया उन पर, जो उससे डरते हैं, पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है। उसने अपना भुजबल दिखाया, और जो अपने आप को बड़ा समझते थे, उन्हें तितर–बितर किया। उसने बलवानों को उनके सिंहासनों से गिरा दिया; और दीनों को ऊँचा किया। उसने भूखों को अच्छी वस्तुओं से तृप्त किया, और धनवानों को छूछे हाथ निकाल दिया। उसने अपने सेवक इस्राएल को सम्भाल लिया कि अपनी उस दया को स्मरण करे, जो अब्राहम और उसके वंश पर सदा रहेगी, जैसा उसने हमारे बाप–दादों से कहा था।” मरियम लगभग तीन महीने उसके साथ रहकर अपने घर लौट गई।
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