यहोशू 8:8-35

यहोशू 8:8-35 HINOVBSI

और जब नगर को ले लो तब उसमें आग लगाकर फूँक देना, यहोवा की आज्ञा के अनुसार ही काम करना; सुनो, मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है।” तब यहोशू ने उनको भेज दिया; और वे घात में बैठने को चले गए, और बेतेल और ऐ के मध्य में और ऐ की पश्‍चिम की ओर बैठे रहे; परन्तु यहोशू उस रात को लोगों के बीच टिका रहा। यहोशू सबेरे उठा, और लोगों की गिनती लेकर इस्राएली वृद्ध लोगों समेत लोगों के आगे आगे ऐ की ओर चला। और उसके संग के सब योद्धा चढ़ गए, और ऐ नगर के निकट पहुँचकर उसके सामने उत्तर की ओर डेरे डाल दिए, और उनके और ऐ के बीच एक तराई थी। तब उसने कोई पाँच हज़ार पुरुष चुनकर बेतेल और ऐ के मध्य नगर के पश्‍चिम की ओर उनको घात में बैठा दिया। और अब लोगों ने नगर के उत्तर ओर की सारी सेना को और उसके पश्‍चिम ओर घात में बैठे हुओं को भी ठिकाने पर कर दिया, तब यहोशू उसी रात तराई के बीच गया। जब ऐ के राजा ने यह देखा, तब वे फुर्ती करके सबेरे उठे, और राजा अपनी सारी प्रजा को लेकर इस्राएलियों के सामने उनसे लड़ने को निकलकर ठहराए हुए स्थान पर जो अराबा के सामने है पहुँचा; और वह नहीं जानता था कि नगर की पिछली ओर लोग घात लगाए बैठे हैं। तब यहोशू और सब इस्राएली उनसे मानो हार मानकर जंगल का मार्ग लेकर भाग निकले। तब नगर के सब लोग इस्राएलियों का पीछा करने को पुकार पुकारके बुलाए गए; और वे यहोशू का पीछा करते हुए नगर से दूर निकल गए। और न ऐ में और न बेतेल में कोई पुरुष रह गया, जो इस्राएलियों का पीछा करने को न गया हो; और उन्होंने नगर को खुला हुआ छोड़कर इस्राएलियों का पीछा किया। तब यहोवा ने यहोशू से कहा, “अपने हाथ का बर्छा ऐ की ओर बढ़ा; क्योंकि मैं उसे तेरे हाथ में दे दूँगा।” और यहोशू ने अपने हाथ के बर्छे को नगर की ओर बढ़ाया। उसके हाथ बढ़ाते ही जो लोग घात में बैठे थे वे झटपट अपने स्थान से उठे, और दौड़कर नगर में प्रवेश किया और उसको ले लिया; और झटपट उसमें आग लगा दी। जब ऐ के पुरुषों ने पीछे की ओर फिरकर दृष्‍टि की, तो क्या देखा कि नगर का धूआँ आकाश की ओर उठ रहा है; और उन्हें न तो इधर भागने की शक्‍ति रही, और न उधर, और जो लोग जंगल की ओर भागे जाते थे वे फिरकर अपने खदेड़नेवालों पर टूट पड़े। जब यहोशू और सब इस्राएलियों ने देखा कि घातियों ने नगर को ले लिया, और उसका धूआँ उठ रहा है, तब घूमकर ऐ के पुरुषों को मारने लगे। और उनका सामना करने को दूसरे भी नगर से निकल आए; इसलिये वे इस्राएलियों के बीच में पड़ गए, कुछ इस्राएली तो उनके आगे, और कुछ उनके पीछे थे; अत: उन्होंने उनको यहाँ तक मार डाला कि उनमें से न तो कोई बचने और न भागने पाया। और ऐ के राजा को वे जीवित पकड़कर यहोशू के पास ले आए। जब इस्राएली ऐ के सब निवासियों को मैदान में, अर्थात् उस जंगल में जहाँ उन्होंने उनका पीछा किया था घात कर चुके, और वे सब के सब तलवार से मारे गए यहाँ तक कि उनका अन्त ही हो गया, तब सब इस्राएलियों ने ऐ को लौटकर उसे भी तलवार से मारा। और स्त्री पुरुष, सब मिलाकर जो उस दिन मारे गए वे बारह हज़ार थे, और ऐ के सब पुरुष इतने ही थे। क्योंकि जब तक यहोशू ने ऐ के सब निवासियों का सत्यानाश न कर डाला तब तक उसने अपना हाथ, जिस से बर्छा बढ़ाया था, फिर न खींचा। यहोवा की उस आज्ञा के अनुसार जो उसने यहोशू को दी थी इस्राएलियों ने पशु आदि नगर की लूट अपनी कर ली। तब यहोशू ने ऐ को फुँकवा दिया, और उसे सदा के लिये खंडहर कर दिया : वह आज तक उजाड़ पड़ा है। और ऐ के राजा को उसने साँझ तक वृक्ष पर लटका रखा; और सूर्य डूबते डूबते यहोशू की आज्ञा से उसका शव वृक्ष पर से उतारकर नगर के फाटक के सामने डाल दिया गया, और उस पर पत्थरों का बड़ा ढेर लगा दिया, जो आज तक बना है। तब यहोशू ने इस्राएल के परमेश्‍वर यहोवा के लिये एबाल पर्वत पर एक वेदी बनवाई, जैसा यहोवा के दास मूसा ने इस्राएलियों को आज्ञा दी थी, और जैसा मूसा की व्यवस्था की पुस्तक में लिखा है, उसने समूचे पत्थरों की एक वेदी बनवाई जिस पर औज़ार नहीं चलाया गया था। और उस पर उन्होंने यहोवा के लिये होमबलि चढ़ाए, और मेलबलि किए। उसी स्थान पर यहोशू ने इस्राएलियों के सामने उन पत्थरों के ऊपर मूसा की व्यवस्था, जो उसने लिखी थी, उसकी नक़ल कराई। और वे, क्या देशी क्या परदेशी, सारे इस्राएली अपने वृद्ध लोगों, सरदारों, और न्यायियों समेत यहोवा की वाचा का सन्दूक उठानेवाले लेवीय याजकों के सामने उस सन्दूक के इधर उधर खड़े हुए, अर्थात् आधे लोग तो गिरिज्जीम पर्वत के, और आधे एबाल पर्वत के सामने खड़े हुए, जैसा कि यहोवा के दास मूसा ने पहले से आज्ञा दी थी कि इस्राएली प्रजा को आशीर्वाद दिए जाएँ। उसके बाद उसने आशीष और शाप की व्यवस्था के सारे वचन, जैसे जैसे व्यवस्था की पुस्तक में लिखे हुए हैं वैसे वैसे पढ़ पढ़कर सुना दिए। जितनी बातों की मूसा ने आज्ञा दी थी, उनमें से कोई ऐसी बात नहीं रह गई जो यहोशू ने इस्राएल की सारी सभा, और स्त्रियों, और बाल–बच्‍चों, और उनके साथ रहनेवाले परदेशी लोगों के सामने भी पढ़कर न सुनाई।