अय्यूब 33:1-17

अय्यूब 33:1-17 HINOVBSI

“तौभी हे अय्यूब! मेरी बातें सुन ले, और मेरे सब वचनों पर कान लगा। मैं ने तो अपना मुँह खोला है, और मेरी जीभ मुँह में चुलबुला रही है। मेरी बातें मेरे मन की सिधाई प्रगट करेंगी; जो ज्ञान मैं रखता हूँ उसे खराई के साथ कहूँगा। मुझे परमेश्‍वर के आत्मा ने बनाया है, और सर्वशक्‍तिमान की साँस से मुझे जीवन मिलता है। यदि तू मुझे उत्तर दे सके, तो दे; मेरे सामने अपनी बातें क्रम से रचकर खड़ा हो जा। देख, मैं परमेश्‍वर के सन्मुख तेरे तुल्य हूँ; मैं भी मिट्टी का बना हुआ हूँ। सुन, मेरे डर के मारे तुझे घबराने की आवश्यकता नहीं है, और न तू मेरे बोझ से दबेगा। “नि:सन्देह तेरी ऐसी बात मेरे कानों में पड़ी है और मैं ने तेरे वचन सुने हैं, ‘मैं तो पवित्र और निरपराध और निष्कलंक हूँ; और मुझ में अधर्म नहीं है। देख, वह मुझ से झगड़ने के दाँव ढूँढ़ता है, और मुझे अपना शत्रु समझता है; वह मेरे दोनों पाँवों को काठ में ठोंक देता है, और मेरी सारी चाल की निगरानी करता है।’ “देख, मैं तुझे उत्तर देता हूँ, इस बात में तू सच्‍चा नहीं है। क्योंकि परमेश्‍वर मनुष्य से बड़ा है। तू उससे क्यों झगड़ता है कि वह अपनी किसी बात का लेखा नहीं देता? क्योंकि परमेश्‍वर तो एक क्या वरन् दो बार बोलता है, परन्तु लोग उस पर चित्त नहीं लगाते। स्वप्न में, या रात को दिए हुए दर्शन में, जब मनुष्य घोर निद्रा में पड़े रहते हैं, या बिछौने पर सोते समय, तब वह मनुष्यों के कान खोलता है, और उनकी शिक्षा पर मुहर लगाता है, जिससे वह मनुष्य को उसके संकल्प से रोके और गर्व को मनुष्य में से दूर करे।