जाते हुए उसने एक मनुष्य को देखा जो जन्म से अंधा था। उसके चेलों ने उससे पूछा, “हे रब्बी, किसने पाप किया था कि यह अंधा जन्मा, इस मनुष्य ने या इसके माता–पिता ने?” यीशु ने उत्तर दिया, “न तो इसने पाप किया था, न इसके माता–पिता ने; परन्तु यह इसलिये हुआ कि परमेश्वर के काम उसमें प्रगट हों। जिसने मुझे भेजा है, हमें उसके काम दिन ही दिन में करना अवश्य है; वह रात आनेवाली है जिसमें कोई काम नहीं कर सकता। जब तक मैं जगत में हूँ, तब तक जगत की ज्योति हूँ।” यह कहकर उसने भूमि पर थूका, और उस थूक से मिट्टी सानी, और वह मिट्टी उस अंधे की आँखों पर लगाकर उससे कहा, “जा, शीलोह के कुण्ड में धो ले” (शीलोह का अर्थ ‘भेजा हुआ’ है)। उसने जाकर धोया, और देखता हुआ लौट आया। तब पड़ोसी और जिन्होंने पहले उसे भीख माँगते देखा था, कहने लगे, “क्या यह वही नहीं, जो बैठा भीख माँगा करता था?” कुछ लोगों ने कहा, “यह वही है,” दूसरों ने कहा, “नहीं, परन्तु उसके समान है।” उसने कहा, “मैं वही हूँ।” तब वे उससे पूछने लगे, “तेरी आँखें कैसे खुल गईं?” उसने उत्तर दिया, “यीशु नामक एक व्यक्ति ने मिट्टी सानी, और मेरी आँखों पर लगाकर मुझ से कहा, ‘शीलोह में जाकर धो ले,’ अत: मैं गया और धोया और देखने लगा।”
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