“सच्ची दाखलता मैं हूँ, और मेरा पिता किसान है। जो डाली मुझ में है और नहीं फलती, उसे वह काट डालता है; और जो फलती है, उसे वह छाँटता है ताकि और फले। तुम तो उस वचन के कारण जो मैं ने तुम से कहा है, शुद्ध हो। तुम मुझ में बने रहो, और मैं तुम में। जैसे डाली यदि दाखलता में बनी न रहे तो अपने आप से नहीं फल सकती, वैसे ही तुम भी यदि मुझ में बने न रहो तो नहीं फल सकते। मैं दाखलता हूँ : तुम डालियाँ हो। जो मुझ में बना रहता है और मैं उसमें, वह बहुत फल फलता है, क्योंकि मुझ से अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते। यदि कोई मुझ में बना न रहे, तो वह डाली के समान फेंक दिया जाता, और सूख जाता है; और लोग उन्हें बटोरकर आग में झोंक देते हैं, और वे जल जाती हैं। यदि तुम मुझ में बने रहो और मेरा वचन तुम में बना रहे, तो जो चाहो माँगो और वह तुम्हारे लिये हो जाएगा। मेरे पिता की महिमा इसी से होती है कि तुम बहुत सा फल लाओ, तब ही तुम मेरे चेले ठहरोगे।
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