उसी रात वह उठा और अपनी दोनों स्त्रियों, और दोनों दासियों और ग्यारहों लड़कों को संग लेकर घाट से यब्बोक नदी के पार उतर गया। उसने उन्हें उस नदी के पार उतार दिया, वरन् अपना सब कुछ पार उतार दिया। और याक़ूब आप अकेला रह गया; तब कोई पुरुष आकर पौ फटने तक उससे मल्लयुद्ध करता रहा। जब उसने देखा कि मैं याक़ूब पर प्रबल नहीं होता, तब उसकी जाँघ की नस को छुआ; और याक़ूब की जाँघ की नस उससे मल्लयुद्ध करते ही करते चढ़ गई। तब उसने कहा, “मुझे जाने दे, क्योंकि भोर होने वाला है,” याक़ूब ने कहा, “जब तक तू मुझे आशीर्वाद न दे, तब तक मैं तुझे जाने न दूँगा।” और उसने याक़ूब से पूछा, “तेरा नाम क्या है?” उसने कहा, “याक़ूब।” उसने कहा, “तेरा नाम अब याक़ूब नहीं, परन्तु इस्राएल होगा, क्योंकि तू परमेश्वर से और मनुष्यों से भी युद्ध करके प्रबल हुआ है।” याक़ूब ने कहा, “मैं विनती करता हूँ, मुझे अपना नाम बता।” उसने कहा, “तू मेरा नाम क्यों पूछता है?” तब उसने उसको वहीं आशीर्वाद दिया। तब याक़ूब ने यह कहकर उस स्थान का नाम पनीएल रखा; “परमेश्वर को आमने–सामने देखने पर भी मेरा प्राण बच गया है।”
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