फिर याक़ूब ने अपना मार्ग लिया, और पूर्बियों के देश में आया। उसने दृष्टि करके क्या देखा कि मैदान में एक कुआँ है, और उसके पास भेड़–बकरियों के तीन झुण्ड बैठे हुए हैं; क्योंकि जो पत्थर उस कुएँ के मुँह पर धरा रहता था, जिसमें से झुण्डों को जल पिलाया जाता था, वह भारी था। और जब सब झुण्ड वहाँ इकट्ठा हो जाते तब चरवाहे उस पत्थर को कूएँ के मुँह पर से लुढ़काकर भेड़–बकरियों को पानी पिलाते, और फिर पत्थर को कुएँ के मुँह पर ज्यों का त्यों रख देते थे। अत: याक़ूब ने चरवाहों से पूछा, “हे मेरे भाइयो, तुम कहाँ के हो?” उन्होंने कहा, “हम हारान के हैं।” तब उसने उनसे पूछा, “क्या तुम नाहोर के पोते लाबान को जानते हो?” उन्होंने कहा, “हाँ, हम उसे जानते हैं।” फिर उसने उनसे पूछा, “क्या वह कुशल से है?” उन्होंने कहा, “हाँ, कुशल से है और वह देख, उसकी बेटी राहेल भेड़–बकरियों को लिये हुए चली आती है।” उसने कहा, “देखो, अभी तो दिन बहुत है, पशुओं के इकट्ठे होने का समय नहीं; इसलिये भेड़–बकरियों को जल पिलाकर फिर ले जाकर चराओ।” उन्होंने कहा, “हम अभी ऐसा नहीं कर सकते; जब सब झुण्ड इकट्ठा होते हैं तब पत्थर कुएँ के मुँह पर से लुढ़काया जाता है, और तब हम भेड़–बकरियों को पानी पिलाते हैं।”
उनकी यह बातचीत हो ही रही थी कि राहेल, जो पशु चराया करती थी, अपने पिता की भेड़–बकरियों को लिये हुए आ गई। याक़ूब ने अपने मामा लाबान की बेटी राहेल को, और उसकी भेड़–बकरियों को देखा तो निकट जाकर कुएँ के मुँह पर से पत्थर को लुढ़काया और अपने मामा लाबान की भेड़–बकरियों को पानी पिलाया। तब याक़ूब ने राहेल को चूमा, और ऊँचे स्वर से रोया। और याक़ूब ने राहेल को बता दिया, कि मैं तेरा फुफेरा भाई हूँ, अर्थात् रिबका का पुत्र हूँ। तब उसने दौड़के अपने पिता से कह दिया। अपने भानजे याक़ूब का समाचार पाते ही लाबान उससे भेंट करने को दौड़ा, और उसको गले लगाकर चूमा, फिर अपने घर ले आया। याक़ूब ने लाबान को अपना सब वृत्तान्त सुनाया। तब लाबान ने याक़ूब से कहा, “तू तो सचमुच मेरी हड्डी और मांस है।” और याक़ूब एक महीना भर उसके साथ रहा।