फिर वह मुझे भवन के द्वार पर लौटा ले गया; और भवन की डेवढ़ी के नीचे से एक सोता निकलकर पूर्व की ओर बह रहा था। भवन का द्वार तो पूर्वमुखी था, और सोता भवन की दाहिनी ओर और वेदी की दक्षिणी ओर नीचे से निकलता था। तब वह मुझे उत्तर के फाटक से होकर बाहर ले गया, और बाहर बाहर से घुमाकर बाहरी अर्थात् पूर्वमुखी फाटक के पास पहुँचा दिया, और दक्षिणी ओर से जल पसीजकर बह रहा था। जब वह पुरुष हाथ में मापने की डोरी लिए हुए पूर्व की ओर निकला, तब उसने भवन से लेकर, हज़ार हाथ तक उस सोते को मापा, और मुझे जल में से चलाया, और जल टखनों तक था। उसने फिर हज़ार हाथ मापकर मुझे जल में से चलाया, और जल घुटनों तक था, फिर और हज़ार हाथ मापकर मुझे जल में से चलाया, और जल कमर तक था। तब फिर उसने एक हज़ार हाथ मापे, और ऐसी नदी हो गई जिसके पार मैं न जा सका, क्योंकि जल बढ़कर तैरने के योग्य था; अर्थात् ऐसी नदी थी जिसके पार कोई न जा सकता था। तब उसने मुझे से पूछा, “हे मनुष्य के सन्तान, क्या तू ने यह देखा है?” तब उसने मुझे नदी के किनारे–किनारे लौटाकर पहुँचा दिया। लौटकर मैं ने क्या देखा, कि नदी के दोनों तटों पर बहुत से वृक्ष हैं। तब उसने मुझ से कहा, “यह सोता पूर्वी देश की ओर बह रहा है, और अराबा में उतरकर ताल की ओर बहेगा; और यह भवन से निकला हुआ सीधा ताल में मिल जाएगा; और उसका जल मीठा हो जाएगा। जहाँ जहाँ यह नदी बहे, वहाँ वहाँ सब प्रकार के बहुत अण्डे देनेवाले जीवजन्तु जीएँगे और मछलियाँ भी बहुत हो जाएँगी; क्योंकि इस सोते का जल वहाँ पहुँचा है, और ताल का जल मीठा हो जाएगा; और जहाँ कहीं यह नदी पहुँचेगी वहाँ सब जन्तु जीएँगे। ताल के तट पर मछवे खड़े रहेंगे, और एनगदी से लेकर ऐनेग्लैम तक वहाँ जाल फैलाए जाएँगे, और उन्हें महासागर की सी भाँति भाँति की अनगिनित मछलियाँ मिलेंगी। परन्तु ताल के पास जो दलदल और गड़हे हैं, उनका जल मीठा न होगा; वे खारे ही रहेंगे। नदी के दोनों किनारों पर भाँति भाँति के खाने योग्य फलदायी वृक्ष उपजेंगे, जिनके पत्ते न मुर्झाएँगे और उनका फलना भी कभी बन्द न होगा, क्योंकि नदी का जल पवित्रस्थान से निकला है। उनमें महीने महीने नये नये फल लगेंगे। उनके फल तो खाने के, और पत्ते औषधि के काम आएँगे।”
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