परन्तु शूशन के यहूदी अदार महीने के तेरहवें दिन को, और उसी महीने के चौदहवें दिन को इकट्ठा हुए, और उसी महीने के पन्द्रहवें दिन को उन्होंने विश्राम करके भोज का और आनन्द का दिन ठहराया। इस कारण देहाती यहूदी जो बिना शहरपनाह की बस्तियों में रहते हैं, वे अदार महीने के चौदहवें दिन को आनन्द और भोज और खुशी और आपस में भोजन सामग्री भेजने का दिन नियुक्त करके मानते हैं।
इन बातों का वृत्तान्त लिखकर, मोर्दकै ने राजा क्षयर्ष के सब प्रान्तों में, क्या निकट क्या दूर रहनेवाले सारे यहूदियों के पास चिट्ठियाँ भेजीं, और यह आज्ञा दी, कि अदार महीने के चौदहवें और उसी महीने के पन्द्रहवें दिन को प्रति वर्ष माना करें। जिन में यहूदियों ने अपने शत्रुओं से विश्राम पाया, और यह महीना जिस में शोक आनन्द से, और विलाप खुशी से बदला गया; (माना करें) और उनको जेवनार और आनन्द और एक दूसरे के पास भोजन सामग्री भेजने और कंगालों को दान देने के दिन मानें।
अत: यहूदियों ने जैसा आरम्भ किया था, और जैसा मोर्दकै ने उन्हें लिखा, वैसा ही करने का निश्चय कर लिया। क्योंकि हम्मदाता अगागी का पुत्र हामान जो सब यहूदियों का विरोधी था, उसने यहूदियों का नाश करने की युक्ति की, और उन्हें मिटा डालने और नष्ट करने के लिये पूर अर्थात् चिट्ठी डाली थी। परन्तु जब राजा ने यह जान लिया, तब उसने आज्ञा दी और लिखवाई कि जो दुष्ट युक्ति हामान ने यहूदियों के विरुद्ध की थी वह उसी के सिर पर पलट आए, तब वह और उसके पुत्र फाँसी के खम्भों पर लटकाए गए। इस कारण उन दिनों का नाम पूर शब्द से पूरीम रखा गया। इस चिट्ठी की सब बातों के कारण, और जो कुछ उन्होंने इस विषय में देखा और जो कुछ उन पर बीता था, उसके कारण भी यहूदियों ने अपने अपने लिये और अपनी सन्तान के लिये, और उन सभों के लिये भी जो उनमें मिल गए थे यह अटल प्रण किया, कि उस लेख के अनुसार प्रति वर्ष उसके ठहराए हुए समय में वे ये दो दिन मानें; और पीढ़ी पीढ़ी, कुल कुल, प्रान्त प्रान्त, नगर नगर में ये दिन स्मरण किए और माने जाएँगे, और पूरीम नाम के दिन यहूदियों में कभी न मिटेंगे और उनका स्मरण उनके वंश से जाता न रहेगा।
फिर अबीहैल की बेटी एस्तेर रानी, और मोर्दकै यहूदी ने पूरीम के विषय यह दूसरी चिट्ठी बड़े अधिकार के साथ लिखी। इसकी नकलें मोर्दकै ने क्षयर्ष के राज्य के एक सौ सत्ताईसों प्रान्तों के सब यहूदियों के पास शान्ति देनेवाली और सच्ची बातों के साथ इस आशय से भेजीं, कि पूरीम के उन दिनों के विशेष ठहराए हुए समयों में मोर्दकै यहूदी और एस्तेर रानी की आज्ञा के अनुसार, और जो यहूदियों ने अपने और अपनी सन्तान के लिये ठान लिया था, उसके अनुसार भी उपवास और विलाप किए जाएँ। पूरीम के विषय का यह नियम एस्तेर की आज्ञा से भी स्थिर किया गया, और उनकी चर्चा पुस्तक में लिखी गई।