दानिय्येल 1:5-14

दानिय्येल 1:5-14 HINOVBSI

राजा ने आज्ञा दी कि उसके भोजन और पीने के दाखमधु में से उन्हें प्रतिदिन खाने–पीने को दिया जाए। इस प्रकार तीन वर्ष तक उनका पालन पोषण होता रहे; तब उसके बाद वे राजा के सामने हाज़िर किए जाएँ। उनमें यहूदा की सन्तान से चुने हुए दानिय्येल, हनन्याह, मीशाएल, और अजर्याह नामक यहूदी थे। खोजों के प्रधान ने उनके दूसरे नाम रखे; अर्थात् दानिय्येल का नाम उसने बेलतशस्सर, हनन्याह का शद्रक, मीशाएल का मेशक, और अजर्याह का नाम अबेदनगो रखा। परन्तु दानिय्येल ने अपने मन में ठान लिया कि वह राजा का भोजन खाकर, और उसके पीने का दाखमधु पीकर अपवित्र न होए; इसलिये उस ने खोजों के प्रधान से विनती की कि उसे अपवित्र न होना पड़े। परमेश्‍वर ने खोजों के प्रधान के मन में दानिय्येल के प्रति कृपा और दया भर दी। खोजों के प्रधान ने दानिय्येल से कहा, “मैं अपने स्वामी राजा से डरता हूँ, क्योंकि तुम्हारा खाना–पीना उसी ने ठहराया है, कहीं ऐसा न हो कि वह तेरा मुँह तेरे संग के जवानों से उतरा हुआ और उदास देखे और तुम मेरा सिर राजा के सामने जोखिम में डालो।” तब दानिय्येल ने उस मुखिये से, जिसको खोजों के प्रधान ने दानिय्येल, हनन्याह, मीशाएल, और अजर्याह के ऊपर देखभाल करने के लिये नियुक्‍त किया था, कहा, “मैं तुझ से विनती करता हूँ, कि अपने दासों को दस दिन तक जाँच, हमारे खाने के लिये सागपात और पीने के लिये पानी ही दिया जाए। फिर दस दिन के बाद हमारे मुँह और जो जवान राजा का भोजन खाते हैं उनके मुँह को देख; और जैसा तुझे देख पड़े, उसी के अनुसार अपने दासों से व्यवहार करना।” उनकी यह विनती उसने मान ली, और दस दिन तक उनको जाँचता रहा।

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