प्रेरितों 28:1-16

प्रेरितों 28:1-16 HINOVBSI

जब हम बच निकले, तो पता चला कि यह द्वीप माल्टा कहलाता है। वहाँ के निवासियों ने हम पर अनोखी कृपा की; क्योंकि मेंह बरसने के कारण ठण्ड थी, इसलिये उन्होंने आग सुलगाकर हम सब को ठहराया। जब पौलुस ने लकड़ियों का गट्ठा बटोरकर आग पर रखा, तो एक साँप आँच पाकर निकला और उसके हाथ से लिपट गया। जब उन निवासियों ने साँप को उसके हाथ से लटके हुए देखा, तो आपस में कहा, “सचमुच यह मनुष्य हत्यारा है कि यद्यपि समुद्र से बच गया, तौभी न्याय ने जीवित रहने न दिया।” तब उसने साँप को आग में झटक दिया, और उसे कुछ हानि न पहुँची। परन्तु वे बाट जोहते थे कि वह सूज जाएगा या एकाएक गिर के मर जाएगा, परन्तु जब वे बहुत देर तक देखते रहे और देखा कि उसका कुछ भी नहीं बिगड़ा, तो अपना विचार बदल कर कहा, “यह तो कोई देवता है।” उस जगह के आसपास उस टापू के प्रधान पुबलियुस की भूमि थी। उसने हमें अपने घर ले जाकर तीन दिन मित्रभाव से पहुनाई की। पुबलियुस का पिता ज्‍वर और आँव लहू से रोगी पड़ा था। अत: पौलुस ने उसके पास घर में जाकर प्रार्थना की और उस पर हाथ रखकर उसे चंगा किया। जब ऐसा हुआ तो उस द्वीप के बाकी बीमार आए और चंगे किए गए। उन्होंने हमारा बहुत आदर किया, और जब हम चलने लगे तो जो कुछ हमारे लिए आवश्यक था, जहाज पर रख दिया। तीन महीने के बाद हम सिकन्दरिया के एक जहाज पर चल निकले, जो उस द्वीप में जाड़े भर रहा था, और जिसका चिह्न दियुसकूरी था। सुरकूसा में लंगर डाल कर हम तीन दिन टिके रहे। वहाँ से हम घूमकर रेगियुम में आए; और एक दिन के बाद दक्षिणी हवा चली, तब हम दूसरे दिन पुतियुली में आए। वहाँ हम को भाई मिले, और उनके कहने से हम उनके यहाँ सात दिन तक रहे; और इस रीति से हम रोम को चले। वहाँ से भाई हमारा समाचार सुनकर अप्पियुस के चौक और तीन–सराए तक हम से भेंट करने को निकल आए, जिन्हें देखकर पौलुस ने परमेश्‍वर का धन्यवाद किया और ढाढ़स बाँधा। जब हम रोम में पहुँचे, तो पौलुस को एक सैनिक के साथ जो उसकी रखवाली करता था, अकेले रहने की आज्ञा मिल गई।