जब हम ने उनसे अलग होकर जहाज खोला, तो सीधे मार्ग से कोस में आए, और दूसरे दिन रुदुस में और वहाँ से पतरा में। वहाँ एक जहाज फीनीके को जाता हुआ मिला, और हम ने उस पर चढ़कर उसे खोल दिया। जब साइप्रस दिखाई दिया, तो हम ने उसे बाएँ हाथ छोड़ा, और सीरिया को चलकर सूर में उतरे; क्योंकि वहाँ जहाज का माल उतारना था। चेलों को पाकर हम वहाँ सात दिन तक रहे। उन्होंने आत्मा के सिखाए पौलुस से कहा कि यरूशलेम में पाँव न रखना। जब वे दिन पूरे हो गए, तो हम वहाँ से चल दिए; और सब ने स्त्रियों और बालकों समेत हमें नगर के बाहर तक पहुँचाया; और हम ने किनारे पर घुटने टेककर प्रार्थना की, तब एक दूसरे से विदा होकर, हम तो जहाज पर चढ़े और वे अपने अपने घर लौट गए। तब हम सूर से जलयात्रा पूरी करके पतुलिमयिस में पहुँचे, और भाइयों को नमस्कार करके उनके साथ एक दिन रहे। दूसरे दिन हम वहाँ से चलकर कैसरिया में आए, और फिलिप्पुस सुसमाचार प्रचारक के घर में जो सातों में से एक था; जाकर उसके यहाँ रहे। उसकी चार कुँवारी पुत्रियाँ थीं, जो भविष्यद्वाणी करती थीं। जब हम वहाँ बहुत दिन रह चुके, तो अगबुस नामक एक भविष्यद्वक्ता यहूदिया से आया। उसने हमारे पास आकर पौलुस का कटिबन्ध लिया, और अपने हाथ पाँव बाँधकर कहा, “पवित्र आत्मा यह कहता है कि जिस मनुष्य का यह कटिबन्ध है, उसको यरूशलेम में यहूदी इसी रीति से बाँधेंगे, और अन्यजातियों के हाथ में सौंपेंगे।” जब हम ने ये बातें सुनीं, तो हम और वहाँ के लोगों ने उससे विनती की कि यरूशलेम को न जाए। परन्तु पौलुस ने उत्तर दिया, “तुम क्या करते हो कि रो–रोकर मेरा दिल तोड़ते हो? मैं तो प्रभु यीशु के नाम के लिये यरूशलेम में न केवल बाँधे जाने ही के लिये वरन् मरने के लिये भी तैयार हूँ।” जब उसने न माना तो हम यह कहकर चुप हो गए, “प्रभु की इच्छा पूरी हो।” इन दिनों के बाद हम ने तैयारी की और यरूशलेम को चल दिए। कैसरिया से भी कुछ चेले हमारे साथ हो लिए, और हमें मनासोन नामक साइप्रस के एक पुराने चेले के यहाँ ले आए, कि हम उसके यहाँ टिकें। जब हम यरूशलेम में पहुँचे, तो भाई बड़े आनन्द के साथ हम से मिले।
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