तब भीड़ के लोग उनके विरोध में इकट्ठे होकर चढ़ आए, और हाकिमों ने उनके कपड़े फाड़कर उतार डाले, और उन्हें बेंत मारने की आज्ञा दी। बहुत बेंत लगवाकर उन्होंने उन्हें बन्दीगृह में डाल दिया और दारोगा को आज्ञा दी कि उन्हें चौकसी से रखे। उसने ऐसी आज्ञा पाकर उन्हें भीतर की कोठरी में रखा और उनके पाँव काठ में ठोंक दिए। आधी रात के लगभग पौलुस और सीलास प्रार्थना करते हुए परमेश्वर के भजन गा रहे थे, और क़ैदी उनकी सुन रहे थे। इतने में एकाएक बड़ा भूकम्प आया, यहाँ तक कि बन्दीगृह की नींव हिल गई, और तुरन्त सब द्वार खुल गए; और सब के बन्धन खुल पड़े। दारोगा जाग उठा, और बन्दीगृह के द्वार खुले देखकर समझा कि क़ैदी भाग गए हैं, अत: उसने तलवार खींचकर अपने आप को मार डालना चाहा। परन्तु पौलुस ने ऊँचे शब्द से पुकारकर कहा, “अपने आप को कुछ हानि न पहुँचा, क्योंकि हम सब यहीं हैं।” तब वह दीया मँगवाकर भीतर लपका, और काँपता हुआ पौलुस और सीलास के आगे गिरा; और उन्हें बाहर लाकर कहा, “हे सज्जनो, उद्धार पाने के लिये मैं क्या करूँ?” उन्होंने कहा, “प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर, तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा।” और उन्होंने उसको और उसके सारे घर के लोगों को प्रभु का वचन सुनाया। रात को उसी घड़ी उसने उन्हें ले जाकर उनके घाव धोए, और उसने अपने सब लोगों समेत तुरन्त बपतिस्मा लिया। तब उसने उन्हें अपने घर में ले जाकर उनके आगे भोजन रखा, और सारे घराने समेत परमेश्वर पर विश्वास करके आनन्द किया।
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